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महाकाल दर लगो सिहस्थ (आल्हा छंद)

महाकाल दर लगो सिहस्थ है जनमन रहो हर्षाय
उज्जैनी नगरी देखो आज दुल्हनिया सी रही सुहाय
पितृ मिलन खो रेवा आई महाकाल रहे हर्षाय
शिप्रा रानी चरण पखारे., मिलन अनोखा रही कराय
एक और से गोरा रानी, लेय बलैेया नजर उतार
दूजी और गणराज हर्ष के, बहनी को है रहे निहार
कुम्भ मिलन खो सभी देवता सज धज आये खेवनहार
मित्र सुदामा राह तकत है, मित्र मिलन की प्यास जगाये
सांदीपनी घर मनमोहन आये शिक्षा रही यही पे पाय...
ब्रह्म बिष्णु नारद संग, राधे संग श्याम सरकार
सियाराम संग लछमन आये, हनुमत राम के सेवादार
जगतजननी नवदुर्गा संग शारद आई वीणा धार
इंद्र देव विश्कर्मा आय कुबेर आये रत्ना धार
उज्जैनी नगरी धर्म की नगरी डग डग महिमा वरनी न जाय
तनक दूर भोले भैरव जी, मदिरा पी टन्ना ने जाए
उतई बिराजी भूकी माता भक्त जनन है महमा गाय
सिंगवाहिनी माई विराजी ज्योत की ज्योति जगत दिखाय
मनोकामना पूरण करती जयकारो से शहर गुंजाय
मंगल करते अमंगल हरते, भोले भाले मंगल नाथ
समय चक्र को काल घुमरव बहा विराजे सिद्ध नाथ
सबकी पीड़ा हरने बाले करते कृपा भोले नाथ
सबकी नैया पार लगबे जो झुकाबे द्वारे माथ
बिगड़ी किस्मत बनती उसकी भोले होते जिनके साथ
कुम्भ में जनजन आये दूर से तर ते करते है स्नान
मंगल गावे.. भोले नाचे होते रात दिन मंगल गान
साधू सन्त ने डेरा डारो उज्जैनी सजी घर द्वार
महिमा सिहस्थ की बड़ी न्यारी भीड़ परी है अपरम्पार
12 साल में भरत मेला शिप्रा के घाट करे बेड़ापार
बड़े बड़े बाबा बड़े बड़े योगी करत दरश और बन्दनवार
पाप तारती और सबरती महिमा है बड़ी अपार
अमृत कुण्ड बन अमर करत है इनकी शोभा रही सुहाय
रेवा मिलकर शिप्रा में कल कल सरिता बड़ी सुहाए
महाकाल की कृपा पाबे रहे सभी है शीश नवाये
भोले भोले सदा ही देते बिन मांगे भरते भण्डार
नमन करत है शीश झुका के आई हूँ मैं तोहरे द्वार
शक्ति आल्हा प्रेम से गावें जय जय करता है संसार
मै तो मांगू प्रेम शांति सबमे भोले बाबा सबका करो उद्धार

शक्ति
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2016 at 8:27pm

आ० बबिता जी . यदि आप छंद पर प्रयास करती है तो आपको मात्राओं का ध्यान रखना पडेगा . आल्हा १६,१५ का छंद है आरा चरण के अंत में २१ जरूरी है . १६,१५ पर कवित्त /घनाक्षरी भी होती है  पर आल्हा की अपनी रिदम  भी है  उस रिदम पर चलकर मात्रिक निर्वाह करें. आप में प्रतिभा है अच्छा कर सकती  हैं . शुभ शुभ .


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 17, 2016 at 3:53pm

इस लिंक पर क्लिक करके आल्हा-छंद के शिल्प विधान पूरी जानकारी हासिल करें आ० बबिता चौबे जी:

http://openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:Topic:...

Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 2:53pm
मोहतरमा बबिता चौबे शक्ति जी आदाब,वाक़ई उज्जैन नगरी इन दिनों दुल्हन की तरह सजा दी गई है, इस प्रस्तुति पर बधाई आपको ।
जनाब अशोक रक्ताले जी के सुझाव उत्तम हैं,ध्यान दीजियेगा ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 17, 2016 at 2:27pm

आदरणीया बबिता चौबे  जी सादर, आल्हा छंद  पर   सुन्दर  प्रयास हुआ  है.लगभग हर  छंद में मात्रा बढ़ ही  रही हैं. इसलिए सर्व प्रथम मात्राएँ सही  करें. दो  छंदों  के  बीच  स्पेस न होने  से पढ़ने में कठिनाई  हुई है. छंद  के भाव उत्तम हैं. जय  श्री महाकाल .

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