For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल

हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

सियासत के पतन का देखिये अंजाम भी साहब ।
दरिन्दों को मिली जो कुर्सियां अच्छी नहीं लगतीं।।

वो सौदागर है बेचेगा यहाँ बुनियाद की ईंटें ।
बिकीं जो रेल की सम्पत्तियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

बिकेगी हर इमारत अब विदेशी बोलियों पर क्या ।
तुम्हें तो जगमगाती बस्तियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

ये नीलामी ये पी एस यू का नाटक बन्द कर दीजै ।
हमारे मुल्क में ये चोरियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

बढ़ेगी फीस बच्चे बे दखल तालीम से होंगे ।
अमीरों के हितों की नीतियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

तेरे तो हुक़्म की तामील करती मीडिया हर पल ।
वतन को ये तेरी चालाकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

बुलन्दी छू रही अब देश की बेरोज़गारी ये ।
मेरी थाली की तुझको रोटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

पढाओ मत पहाड़ा अब तुम्हें हम पढ़ चुके इतना ।
के जुमले और तुम्हारी शेखियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

ज़रा नज़दीकियों का फ़लसफ़ा पढ़ लीजिये साहब ।
हमारे दरमियाँ हों दूरियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on December 9, 2019 at 3:25pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं'

मतले का भाव स्पष्ट नहीं,और ऊला मिसरे में 'सिसकियाँ' हिन्दी भाषा का शब्द है इसलिए इज़ाफ़त उचित नहीं ।

'बढ़ेगी फीस बच्चे बे दखल तालीम से होंगे'

इस मिसरे में 'बे दखल' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "बे दख़्ल"221 देखियेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:18am
आ0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:17am
आ0 प्रदीप देवीशरण भट्ट साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:16am
आ0 सुशील सरना साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 6:15am

आ. भाई नवीन जी, उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 6, 2019 at 11:48am

नवीन जी सम सामयिक अच्छी रचना के लिए बधाई।

"ये नीलामी ये पी एस यू का नाटक बंद भी कर दो

  हमारे मुल्क में ये चोरियाँ अच्छी नही लगती"

Comment by Sushil Sarna on December 5, 2019 at 7:26pm

हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

वाह आज के नंगे यथार्थ को कितनी संजीदगी से आपने अपनी ग़ज़ल में पेश किया है। इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई कबूल फरमाएं आदरणीय नवीन जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service