For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा - सलीम 'रज़ा' रीवा

2122 1122 1122 22 

मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा 
लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा


रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

छीन लेगा ये मेरा होश यकीनन इक दिन 
यूँ ख़यालों में शब-ओ-रोज़ का आना तेरा

होश वालों को कहीं फिर न बना दे  पागल
महफिले हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा  

भूल पाना बड़ा मुश्किल है वो दिलकश मंज़र
मुस्कुरा कर लब-ए-नाज़ुक को दबाना तेरा

--

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2019 at 7:35am

बहुत अच्छा मशविरा है मोहतरम समर साहब बहुत बहुत शुक्रिया, नवाज़िश 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2019 at 7:34am

बहुत अच्छा मशविरा है मोहतरम तस्दीक साहब, शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 7, 2019 at 9:30am

जनाब सलीम रज़ा साहिब आ दाब, अच्छी गज़ल हुई है मुबारकबाद कुबूल फरमाएं l शेर 3 के सानी को यूँ भी कर सकते हैं 

"हर घड़ी मेरे ख़्यालों में यूँ आना तेरा" 

Comment by Samar kabeer on October 7, 2019 at 7:35am

'यूँ ख़यालों में सुबो शाम का आना तेरा'

ये मिसरा अब भी ग़लत है "सुबो शाम''?,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'यूँ ख़यालों में शब-ओ-रोज़ का आना तेरा'

'महफिलें हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा'

इस मिसरे में 'महफिलें' बहुवचन हो रहा है,इसे "महफ़िल-ए-" कर लें । 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:43pm

ग़ज़ल तक पहुँचने के लिए बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब , जी मैं सेट करता हूँ ,

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:42pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:41pm

बहुत शुक्रिया बृजेश कुमार 'ब्रज' जी

Comment by TEJ VEER SINGH on October 5, 2019 at 2:01pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रजा रीवा जी। बेहतरीन गज़ल।

रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 11:26am

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'यूँ ख़्यालों में सुब्ह--शाम का आना तेरा'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'अहले महफ़िल को ये दीवाना बना रक्खा है
महफिलें हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा'

इस शैर के दोनों मिसरों में 'महफ़िल' शब्द खटकता है,और ऊला में 'रक्खा है' को "रखता है" करना उचित होगा,देखियेगा ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:05pm

वाह क्या कहने बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है ज़नाब सलीम साहब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
2 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
8 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
8 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
8 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service