For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बूढ़े ने आँखें बंद किये-किये ही करवट ली I उसका ध्यान किचन से आती आवाज की ओर चला गया I

‘कैसा बना है ?’– बहू ने पूछा I

‘बहुत बढ़िया‘- बेटे ने कहा –‘थोड़ा चटनी और डालो I हाँ बस--बस I’

‘अच्छा लगा---? नमक ठीक पड़ा है न ?’

‘हाँ, बहुत मजेदार है I थोडा और कुरकुरा करो I’

‘जल जायेंगे ---‘

‘जलेंगे नहीं, बस थोड़ा लाल हो जाय I ‘- लडके ने उकसाया  I फिर जैसे उसे कुछ याद आया –‘पापा कहाँ हैं ?’

बूढ़े की आँखों में चमक आयी I कम से कम बेटे को तो उसकी फ़िक्र है I उसके सामने गरमा-गरम पकौड़े की प्लेट नाच उठी I मन में आशा की किरण जागी I

‘पापा सो रहे है I‘ बहू ने ठंडे स्वर में कहा –‘लो, ये वाले कुरकुरे हैं I’

बूढ़े का मन बुझ गया I उसने एक लम्बी उसांस ली और इस प्रकार खांसा कि बेटा सुन ले I    

‘बढ़िया है  –I’- बेटे ने चटकारे लेते हए कहा –‘पेट भर गया I पापा जाग गए हैं I’

‘अरे, अभी कैसे भर गया ? थोड़ी देर में फिर मांगने लगोगे i लो, दो और लो I’

‘अच्छा, एक दे दो I’

‘एक नही दो –- I’

‘अच्छा बाबा, तुम नही मानोगी I अब चाय चढ़ा दो और देखो पापा जाग चुके हैं, उन्हें भी दे आओ I’

बूढ़े का मन हुलस उठा I उसने फिर एक लम्बी खखार ली I  

तभी किचन से बहू की धीमी आवाज आयी - ‘पापा ने दो बजे खाना खाया था और अभी सात बजे हैं I उनका पेट ठीक नहीं रहता I भूख भी कम लगती है I मोशन आने लगते है I’– बहू ने चिंता जताते हुए कहा I

बूढ़े का कलेजा हलक तक आ गया I उसने प्रतिवाद करना चाहा  पर जुबान ने साथ नहीं दिया

‘अगर ऐसा है, तब रहने दो, पकौड़ी तो और नुकसान करेगी I’

उम्मीद का पेड़ धराशायी हो गया  I बूढ़े ने अपनी नम आँखे पोंछ कर करवट बदल ली I  

 

 ( मौलिक / अप्रकाशित )

 

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Asif zaidi on March 27, 2019 at 1:27am

वाह वाह श्रीवास्तव जी बहुत बढ़िया लघुकथा की मुबारकबाद 

Comment by vijay nikore on March 22, 2019 at 10:47pm

लघुकथा बहुत ही पसन्द आई। इसमें सच्चाई है, अच्छी सोच है, पाठक को पकड़ रखती है ऐसी रचना। बधाए, आ० गोपाल नारायण जी

Comment by Samar kabeer on March 20, 2019 at 3:14pm

जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 19, 2019 at 8:15pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी। वरिष्ठ जनों की बच्चों जैसी खाद्य पदार्थों के प्रति रुचि होना।उसकी पूर्ति ना होने से उत्पन्न आंतरिक पीड़ा और उनकी प्रतिबंधित खान पान व्यवस्था पर लाज़वाब लघुकथा।

Comment by विनय कुमार on March 19, 2019 at 5:57pm

वाह, बहुत बढ़िया और हक़ीक़त के करीब की रचना, बुढ़ापे में तो खाने पीने की लालसा और बढ़ जाती है लेकिन स्वास्थ्य साथ नहीं देता. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया लघुकथा के लिए आ डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब

Comment by Sushil Sarna on March 19, 2019 at 4:54pm

वर्तमान में पारिवारिक परिवेश में पनपते विचारों का गहन मंथन चित्रित किया है सर आपने। इस लघु कथा में एक कटु यथार्थ को दर्शाती मार्मिक व्यथा सजीव हो उठी। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई एवं नमन आदरणीय डॉ गोपल जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 18, 2019 at 4:57pm

वाह। बेहतरीन व एकदम उम्दा और तीखी, विचारोत्तेजक।  परहेज़ चलते हुए भी मीठी वाणी में दुलार सहित वैकल्पिक रुचि स्वल्पाहार कराना चाहिए बहू व बेटे द्वारा।

हार्दिक बधाई और आभार इस अहम मुद्दे को उठाने हेतु आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service