For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ अब्र जरा आग बुझाने के लिए आ

221-1221-1221-122.


तपती जमीं है आज तू छाने के लिए आ ।
ऐ अब्र जरा आग बुझाने के लिए आ ।।

यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।

ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।

जब नाज़ से आया है कोई बज़्म में तेरी ।
क़ातिल तू हुनर अपना दिखाने के लिए आ।।

शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख ।
मेरी वफ़ा का कर्ज चुकाने के लिए आ ।।

टूटे न मुहब्बत का भरम इस जहाँ से अब ।
मेरे लिए तू छोड़ , ज़माने के लिए आ ।।

तन्हाइयों में चैन मयस्सर तुझे है कब।
अम्नो सुकूँ से रात बिताने के लिए आ ।।

खो जाए उमीदें न कहीं वस्ल की मेरी ।
सोया है मेरा ख्वाब जगाने के लिए आ ।।

चर्चा में तेरी खूब रही सख़्त हुकूमत ।
अब हुक्म मेरे दिल पे चलाने के लिए आ ।।

इल्जाम लगा बैठे गुनाहों के तरफ़दार ।
गर हो सके तू नाज़ उठाने के लिए आ ।।

आती नहीं है नींद तस्व्वुर की जमीं पर ।
ऐ हुस्न मेरा होश मिटाने के लिए आ ।।

-नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित 

Views: 577

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 13, 2018 at 6:15pm

आ0 बृजेश कुमार ब्रज जी तस्व्वुर की जमी पर 

टाइपो पर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 13, 2018 at 6:14pm

आ वी ऍम  वृष्टि जी ग़ज़ल तक आने के लिए सादर आभार और नमन । 

Comment by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 2:54pm
आदरणीय नवीन जी, प्रणाम! आपकी रचना में विषय और भाव गज़ब के होते है और हर शेर मन को लुभा लेता है। बहुत बहुत बधाई !
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 13, 2018 at 7:45am

वाह आदरणीय त्रिपाठी जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल..आखरी शेर के उला को लेकर संशय है "तसव्वुर के जमीं पर" या तसव्वुर की जमीं पर"..सादर

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 12, 2018 at 6:17pm

आ0 कबीर सर सादर नमन ,

आपकी बात से सहमत हूँ सर ग़ज़ल वाकई जल्दबाजी में ही लिखी गयी है । त्रुटियां सम्भावित थीं सो आपकी निगाह से बचना भी असम्भव था । एक मिसरा तो स्पष्ट तौर से बे बह्र था । 

उसे मैंने ठीक करने का प्रयास भी किया है जो निम्नवत है 

     

ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।

जब नाज़ से आया( है ) यहां है टाइप में छूट गया ।

नीचे के दो शेर में एक मात्रा इजाफ़त के तौर पर मिसरे के अंत बढ़ाया गया है । मैंने कहीं पढ़ा था कि यदि मिसरे के अंत में 2 मात्रा है तो 1 मात्रा बढ़ा सकते हैं । इसी ज्ञान के आधार पर एक मात्रा मिसरे के अंत में अधिक लिया गया है ।

    यदि इस बह्र में एक मात्रा बढाना वर्जित ही तो बताने की कृपा करें । 

सादर नमन । 

शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख 

22  1  1 2  2  1  1  22   1  1  2  2 (1)

यूँ ही न गुजर  जाये कहीं तिश्नगी का दौर 

2  2 1  12    21   12   211  2    2 (1)

Comment by Samar kabeer on October 12, 2018 at 2:48pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,जल्दबाज़ी में कही गई है ।

'यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर'

'इतनी खलिश के साथ गुजारी है जिंदगी'

'जब नाज़ से आया कोई बज़्म में तेरी'

'शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख'

इन मिसरों की बह्र चेक करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on October 12, 2018 at 2:26pm

शानदार रचना 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 12, 2018 at 10:53am

हार्दिक बधाइ आदरणीय नवीन मणि जी।लाज़वाब गज़ल।

यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।

इतनी खलिश के साथ गुजारी है जिंदगी ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"जी बहुत शुक्रिया आदरणीय चेतन प्रकाश जी "
12 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service