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2122 1122 1122 22

कुछ धुंआ घर के दरीचों से उठा हो जैसे ।

फिर कोई शख्स रकीबों से जला हो जैसे ।।

खुशबू ए ख़ास बताती है पता फिर तेरा ।

तेरे गुलशन से निकलती ये सबा हो जैसे ।।

बादलों में वो छुपाता ही रहा दामन को ।

रात भर चाँद सितारों से ख़फ़ा हो जैसे ।।

जुल्म मजबूरियों के नाम लिखा जायेगा ।

बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे ।।

खैरियत पूँछ के होठों पे तबस्सुम आना ।

हाल ए दिल मेरा तुझे खूब पता हो जैसे ।।

बस जफाएँ ही जफाएँ हैं तेरी महफ़िल में ।

ज़ख़्म सीने का तेरे और हरा हो जैसे ।।

इस तरह घूर के देखा है उन्होंने हमको।

उनकी नजरों में हमारी ही ख़ता हो जैसे ।।

राज़ से पर्दा उठाती हैं ये आँखे तेरी ।

मुन्तज़िर हो के तू मुद्दत से खड़ा हो जैसे ।।

लोग पोरस की तरह हार गए हैं शायद ।

वो सिकन्दर सा ज़माने से लड़ा हो जैसे ।।

एक मुद्दत से मियां होश में मिलते ही नहीं ।

आपको हुस्न करीने से डसा हो जैसे ।।

शोर बरपा है बहुत तिश्नगी के आलम में ।

आज मैख़ाने में हंगामा हुआ हो जैसे ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on August 8, 2018 at 12:58pm

गज़ल अच्छी बनी है। आपको बधाई, नवीन जी।

Comment by Samar kabeer on August 7, 2018 at 11:01am

'बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे'

इस मिसरे पर जनाब रवि जी की शंका ठीक लगती है,चाहें तो यूँ भी कर सकते हैं:-

'ज़ह्र सुक़रात ने फिर आज पिया हो जैसे'

क्या कहते हैं रवि जी इस मिसरे के बारे में?

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 7, 2018 at 8:25am

आ0 रवि शुक्ला जी सप्रेम आभार । इस पर मैं आ0 कबीर साहब का विचार भी आमंत्रित करता हूँ । 

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2018 at 11:47pm

आदरणाीय नवीन मणिजी गजल के लिए बघाई स्वीकार करें  हर को काेई  पिये जैसे  या किसी ने जहर  पिया हो जैसे  कुछ इस प्रकार वाक्य विन्यास होरहा है इस  मिसरे में । शंका का समाधान कीजियेगा। सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:03pm

आ0 बसन्त कुमार शर्मा साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:02pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:01pm

आ0 नरेंद्र सिंह चौहान साहब शुक्रिया

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:00pm

आ0 सन्तोष खिरवादकर साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 10:59pm

आ0 कबीर सर सादर नमन । 

गलती के लिए माफ़ी ।

आगे से विशेष ध्यान दूंगा ।

Comment by santosh khirwadkar on August 5, 2018 at 7:29pm

वाह ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये शे’र दर शे’र बधाई स्वीकारें!

राज़ से पर्दा उठाती हैं ये आँखे तेरी

मुन्तज़िर हो के तू मुद्दत से खड़ा हो जैसे ....बेहद ख़ूबसूरत शे’र !!!

कृपया ध्यान दे...

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