For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में

22 22 22 22 22 2


भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।।
लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।1

महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।
दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।2

इस बस्ती में मुझको तन्हा मत छोडो ।
लुट जाते हैं लोग यहाँ वीराने में ।।3

वह भी अब रहता है खोया खोया सा ।
कुछ तो देखा है उसने दीवाने में ।।4

होश गवांकर लौटा हूँ मैख़ानों से।
जब उभरा है अक्स तेरा पैमाने में ।।5

वक्त मुदर्रिस बनकर ही समझायेगा ।
जाया मत कर जोश उसे समझाने में ।।6

जेब और सत्ता से है उनका रिश्ता ।
कौन सुनेगा बात तुम्हारी थाने में ।।7

राज़ खोलती मक्तूलों की आँखें सब ।
देर लगी है राहत को पहुँचाने में ।।8

महँगी है बाज़ार मुहब्बत की यारो ।
आशिक बिकते इश्क़ यहां फरमाने में ।।9

कैसे कह दूँ है दुनिया महफूज़ तेरी ।
मिलते हैं बारूद बहुत तहखाने में ।।10

मत छोड़ो कल पर कामों का बोझ कभी ।
आ जाती है मौत यहाँ अनजाने में ।। 11

--नवीन मणि त्रिपाठी


मौलिक अप्रकाशित

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 1, 2018 at 11:35am

//तरही में जब मेरी नजर आपके कमेंट पर गयी उसके बाद मैंने बहुत प्रयास किया परन्तु रिप्लाई का आप्सन ही नहीं आया जिसकी वजह से मैं रिप्लाई ही नहीं कर पाया ।//

मुशायरे के कुछ नियम हैं शनिवार की रात 12बजे रिप्लाय बॉक्स बन्द हो जाता है,मुशायरे कि अवधि दो दिवस होती है(जो कम नहीं) कृपया मुशायरे का इश्तिहार ध्यान से पढ़ें ।

// दूसरी बात यह कि ओबीओ में सभी श्रेष्ठ रचनाकार हैं उनकी मेरे जैसा विद्यार्थी सिवा वाह वाह के उन्हें कुछ इस्लाह करने की क्षमता नहीं रखता । //

ये बात ध्यान में रखें कि ओबीओ मंच पर सभी विद्यार्थी हैं,यहाँ कोई कमतर नहीं,कोई श्रेष्ठ नहीं,सब बराबर हैं ।

// आपकी डांट को मैं अति गम्भीरता से ले रहा हूँ ।//

ये डांट नहीं प्रिय अनुज, आग्रह और आपके प्रति प्रेम है ।

//  मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अपने अन्य साथियों की रचनाओं को जरूर पढूं । //

आपकी प्रतिक्रया का इन्तिज़ार रहेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 8:10pm

आ0 कबीर सर सादर नमन 

तरही में जब मेरी नजर आपके कमेंट पर गयी उसके बाद मैंने बहुत प्रयास किया परन्तु रिप्लाई का आप्सन ही नहीं आया जिसकी वजह से मैं रिप्लाई ही नहीं कर पाया । 

     आपकी डांट को मैं अति गम्भीरता से ले रहा हूँ । मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अपने अन्य साथियों की रचनाओं को जरूर पढूं । 

     दो समस्याएं मेरे कमेंट को विशेष तौर पर प्रभावित कर जातीं हैं ।

   पहला यह की मेरे घर पर नेटवर्क की घोर समस्या बनी रहती है ।

दूसरी बात यह कि ओबीओ में सभी श्रेष्ठ रचनाकार हैं उनकी मेरे जैसा विद्यार्थी सिवा वाह वाह के उन्हें कुछ इस्लाह करने की क्षमता नहीं रखता । 

      लेकिन अब आपकी आज्ञा का पालन मैं यथा संभव अवश्य करूँगा । क्षमा याचना के साथ आपका -नवीन 

Comment by Samar kabeer on July 31, 2018 at 6:34pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,मंच के अधिकतर सदस्यों की ये शिकायत है कि आप दूसरे रचनाकारों पर प्रतिक्रया नहीं देते,मैंने भी आपसे बार-बार निवेदन किया है,लेकिन आप उस पर ध्यान नहीं देते,बाक़ी लोग भी आप की तरह हो जाएं तो ज़रा सोचिए कैसा लगेग़ा? तरही मुशायरे में भी मैंने आपसे निवेदन किया था,लेकिन वहाँ भी आपने ध्यान नहीं दिया,पुनः निवेदन करता हूँ कि आप मंच की गरिमा का ध्यान रखते हुए अपनी सक्रियता अवश्य दिखएंगे ।

ग़ज़ल आपकी अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

महँगी है बाज़ार मुहब्बत की यारो ।

इस मिसरे में 'मंहगी' को "मंहगा" कर लें,'बाज़ार'शब्द पुल्लिंग है ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 6:13pm

आ0 श्याम नरायन वर्मा साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 6:12pm

आ0 सुशील शरण साहब बहुत बहुत आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 6:12pm

आ0 गुमनाम पिथौरा गढ़ी साहब हार्दिक आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 31, 2018 at 6:11pm

आ0 बसन्त कुमार शर्मा साहब तहेदिल से शुक्रिया

Comment by Shyam Narain Verma on July 31, 2018 at 5:25pm
बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सादर ।
Comment by Sushil Sarna on July 31, 2018 at 3:27pm

भीड़ बहुत है अब तेरे मैख़ाने में ।।
लग जाते हैं दाग़ सँभल कर जाने में ।।1

महफ़िल में चर्चा है उसकी फ़ितरत पर ।
दर्द लिखा है क्यों उसने अफ़साने में ।।2

गज़ब के अहसास हैं आदरणीय। मज़ा आ गया ऐसी ग़ज़ल पढ़ के। दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2018 at 7:32am

शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.   ..  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service