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समाज सेवा - लघुकथा –

समाज सेवा - लघुकथा –

दद्दू नब्बे का आंकड़ा पार कर चुके थे। पूरा परिवार शहर में बस गया था लेकिन दद्दू गाँव में अपनी पुस्तैनी हवेली में ही पड़े थे। उनकी देखभाल और तीमारदारी के लिये बड़ी बहू साथ में थी। खाने पीने से ज्यादा दद्दू की दवाईयों का ख्याल रखना पड़ता था। यूं कहो कि दद्दू दवाओं के सहारे ही जीवित थे। दद्दू की दुनियाँ एक बिस्तर पर सिमट चुकी थी।

"दद्दू, मुँह खोलो, दवा खालो"?

"बहू, अब ये दवाओं का सिलसिला खत्म कर दो। एक बार बस छुट्टन को बुलादो। उससे मिलकर अलविदा कह लें"।

"दद्दू, आपको तो मालूम ही है कि छुट्टन को इतनी फ़ुर्सत कहाँ मिलती है"?

"ऐसा क्या काम करता है छुट्टन"?

"वही खानदानी धंधा। राजनीति और समाजसेवा"।

"पर बिल्लू तो कह रहा था कि छुट्टन शहर का सबसे नामी गुंडा है"?

"अब जिसमें जितनी समझ है, वही तो बोलेगा"।

"बहू, बिल्लू एक पढ़ा लिखा,समझदार और जिम्मेदार लड़का है। शहर में बहुत बड़ा ठेकेदार है"।

"फिर किसलिये परिवार की बदनामी करते फिरते हैं"?

"वह तो यह भी बता रहा था कि छुट्टन ज़मीन जायदाद के अवैध कब्जे भी करता है। गैर कानूनी कामों की सुपाड़ी भी लेता है"?

"दद्दू, आजकल यही सब तो राजनीति और  समाजसेवा के काम है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on May 10, 2018 at 12:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 10, 2018 at 12:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 9:33pm

मुहतरम तेजवीर साहिब ,उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on May 9, 2018 at 8:29pm

बहुत ही सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 5:29pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 8, 2018 at 3:23pm

आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, नमस्कार । यही आज की राजनीति और समाजसेवा है – बहुत खूब । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 2:34pm

हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।

Comment by babitagupta on May 8, 2018 at 1:22pm

आदरणीय सर जी,आभार,राजनीति और समाज सेवा पर जो कटाक्ष किया हैं काबिले तारीफ़,रचना प्रस्तुति पर बधाई.

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 10:23am

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। आपने जिस तरह विश्लेषण करते हुए लघुकथा के कथ्य और लेखन शैली की व्याख्या की, मन अभिभूत हो गया। पुनः आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2018 at 10:15am

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। अवैध कारोबार ही तो आज की राजनीति और समाजसेवा है, क्या खूब नब्ज पकड़ी आपने आज के सूरतेहाल का। एक लेखक को सदैव समाज के प्रति जागरूक रहना चाहिए और अपने लेखों/ रचनाओं/ लघुकथाओं के माध्यमों से इन्हें उकेरते भी रहना चाहिए। आपकी पैनी दृष्टि को सलाम। इस उम्दा लघुकथा पर कोटिश बधाइयाँ

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