1212---1122--1212--22
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कठिन, सरल का कोई मसअला नहीं होता
अगर तू ठान ले दिल में तो क्या नहीं होता
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अगर हो अज़्म तो पत्थर में छेद होता है
हुनर मगर ये सभी को अता नहीं होता
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हमारे कर्म से प्रारब्ध भी बदलता है
नसीब अपना कभी तयशुदा नहीं होता
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ये तज्रिबा है हमारा मुशाहिदा भी है
अमीर-ए-शह्र किसी का सगा नहीं होता
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सितमगरों के इशारों पे खेल होता है
अदालतों में कोई फ़ैसला नहीं होता
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जुड़ा ही रहता है ममता की गर्भनाल से वो
वजूद बेटे का माँ से जुदा नहीं होता
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दिनेश' वक़्त की शतरंज का मैं पैदल हूँ
मैं कब पिटूँगा मुझे ख़ुद पता नहीं होता
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय दिनेश जी अच्छी ग़ज़ल कही आपने शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं
हार्दिक बधाई आदरणीय दिनेश जी। बेहतरीन गज़ल।
सितमगरों के इशारों पे खेल होता है
अदालतों में कोई फ़ैसला नहीं होता
.
जुड़ा ही रहता है ममता की गर्भनाल से वो
वजूद बेटे का माँ से जुदा नहीं होता
आ. भाई दिनेश जी, अच्छी गजल हुई है , हार्दिक बधाई ।
जी,मुझे याद है,इसी लिये लिख देता हूँ ।
हौसला अफ़ज़ाई के लिये आभार आदरणीय निलेश सर जी। बहुत शुक्रिया। अगर कहीं चूक लगे, अवश्य point out किया करें। सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया आ. समर साहब, हौसला अफ़ज़ाई और सुधार , दोनों के लिए तहे दिल से आभार, सर। बिना झिझक निशान देही किया करें, सर। मैंने एक बार बहुत पहले भी कहा था, , कुछ भर्ती का लगे, तो अवश्य point out करें, सर। सादर।
अच्छी ग़ज़ल है आ. दिनेश भाई,
बधाई
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले का सानी यूँ भी कह सकते हैं :-
"अगर तू ठान ले दिल में तो क्या नहीं होता'
4था शैर यूँ भी कह सकते हैं :;
"ये तज्रिबा है हमारा मुशाहिदा भी है
अमीर-ए-शह्र किसी का सगा नहीं होता'
आख़री शैर में क़ाफ़िया सहीह नहीं,सहीह शब्द है "बादशाह"
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