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झूठी कसम तो आपकी खाई न जाएगी

221 2121 1221 212

सच्ची  जो बात है  वो छुपाई न जाएगी ।

झूठी कसम तो आप की खाई न जाएगी ।।

बस हादसे ही हादसे मिलते रहे मुझे ।

लिक्खी खुदा की बात मिटाई न जाएगी ।।

चेहरे हैं बेनकाब यहाँ कातिलों के अब।

लेकिन सजाये मौत सुनाई न जाएगी ।।

ज़ाहिद खुदा की ओर मुखातिब न कर मुझे ।

काफ़िर हूँ मैं नमाज़ पढ़ाई न जाएगी ।।

कितने थे बेकरार तेरे इंतजार में ।

बरसात की वो रात भुलाई न जाएगी ।।

देखा है मैंने आपको जब से निगाह भर ।

ऐसी लगी है आग बुझाई न जाएगी ।।

मायूस मैकदे से यूँ लौटे तमाम रिन्द ।

शायद अभी शराब पिलाई न जयेगी ।।

गुजरेगी उम्र आपकी बस तिश्नगी के साथ ।

चिलमन जो आप से  ये हटाई न जाएगी ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 3, 2018 at 2:03pm

आ0 ब्रजेश कुमार भाई समर कबीर साहब ओबीओ के ही नही बल्कि ग़ज़ल के बादशाह हैं । उनकी इस्लाह बहुत कीमती है मेरे लिए । 

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 3, 2018 at 1:59pm

आ0 कबीर सर ओबीओ में उपस्थित देखकर अति प्रसन्नता हुई । ईश्वर आपको ऐसे ही स्वस्थ और प्रसन्न चित्त रखें । मैं ग़ज़ल को सुधरता हूँ । मेरा सादर नमन । विशेष आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2018 at 8:50pm

आदरणीय त्रिपाठी जी...बहुत खूब ग़ज़ल कही..आदरणीय समर जी की टिप्पड़ी बड़ी ज्ञान वर्धक है..सादर

Comment by Samar kabeer on February 2, 2018 at 6:15pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'जो बात है सही वो छुपाई न जाएगी'

इस मिसरे में 'सही' शब्द के बारे में आपको कुछ बताना चाहूंगा,ये शब्द उर्दू में दो तरह से लिखा जाता है, एक तो 'सीन',छोटी 'ह्','ये',इसका अर्थ है "सीधा" और दूसरा 'सुवाद',बड़ी 'ह्','ये',और फिर बड़ी 'ह' इस तरह ये शब्द बना "सहीह",इसका अर्थ है "दुरुस्त",आपके मिसरे में जो शब्द लिया है वो 'सहीह'होना चाहिये, इस लिहाज़ से आप मतले का ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं :-

'सच्ची जो बात है वो छुपाई न जाएगी'

'काफ़िर हूँ मैं नमाज़ पढ़ाई न जाएगी'

इस मिसरे में 'नमाज़ पढ़ाई'शब्द ग़लत इसलिये है कि नमाज़ हर व्यक्ति नहीं पढ़ा सकता,उसके लिए इमाम होता है,यहाँ 'ननाज़ पढ़ी न जाएगी' का भाव है, इस मिसरे को आप ख़ुद बदलने का प्रयास करें ।

'देकग जो उसने आपको जबसे निगाह भर'

इस मिसरे में भाव स्पष्ट नहीं है,किसने देखा है?  इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'देखा है मैंने आपको जबसे निगाह भर'

'यूँ मैकदा से होके हैं लौटे तमाम रिन्द'

इस मिसरे ने भाव के साथ शिल्प भी कमज़ोर है ,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'मायूस मैकदे से यूँ लौटे तमाम रिन्द'

'चिल्मन तो अपने आप हटाई न जाएगी'

इस मिसरे में शिल्प के साथ व्याकरण दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं :-

'चिल्मन ये आपसे जो हटाई न जाएगी'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2018 at 5:45pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on February 1, 2018 at 8:07am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                              शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 31, 2018 at 2:01pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

चेहरे हैं बेनकाब यहाँ कातिलों के अब।

लेकिन सजाये मौत सुनाई न जाएगी ।।

कृपया ध्यान दे...

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