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ग़ज़ल,,,,भीगी पलकों पे कई ख़्वाब,,

2122/1122/1122/22/112

अश्क़ आँखों में यूँ बेताब हुआ करते हैं
भीगी पलकों पे कई ख़्वाब हुआ करते हैं।

जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं।

जो भी रखते हैं बुज़ुर्गों की रिवायत का भरम
लोग दुनिया में वो नायाब हुआ करतें हैं।

ख़ुश्क फूलों की तरह मुझको समझने वालों
गुल में ख़ुश्बू के कई बाब हुआ करते हैं।

तुहमतें गैरों पे साज़िश की लगाने वाले
तेरे दुश्मन तेरे एहबाब हुआ करते हैं।

तुझसे मिलने को हूँ बेताब ये है सच लेकिन
आमद ओ रफ़्त के असबाब हूआ करते हैं।

जो भी ठुकराते हैं दावत को रसूलों की सहर
राह ए दरिया में वो ग़रका़ब हुआ करते हैं।

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Ajay Tiwari on November 8, 2017 at 11:33am

आदरणीय अफ़रोज़ साहब,
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनायें.

'तुझसे मिलने को हूँ बेताब है ये सच लेकिन
आमद ओ रफ़्त के असबाब हुआ करते हैं'

खास तौर से ये शेर बहुत अच्छा लगा.


'गुल में ख़ुश्बू के कई बाब हुआ करते हैं'

नायाब मिसरा है.

सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 8:27am
तुहमतें गैरों पे साज़िश की लगाने वाले
तेरे दुश्मन तेरे एहबाब हुआ करते हैं।
वह वाह जनाब ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक़बाद.
Comment by Mohammed Arif on November 8, 2017 at 8:03am
आदरणीय अफरोज़ सहर जी आदाब, बहुत ही ख़ूबसूरत अश'आर,लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 9:22pm
जनाब सुशील सरना जी ग़ज़ल को सराहने के लिए आपका दिल की गहराईयों से शुक्रिया अदा करता हूँ,,,
Comment by Sushil Sarna on November 7, 2017 at 9:18pm

अश्क़ आँखों में यूँ बेताब हुआ करते हैं
भीगी पलकों पे कई ख़्वाब हुआ करते हैं।

जिनकी क़ीमत ही नहीं लोगों की नज़रों में कोई
रब की नज़रों में वो सुरख़ाब हुआ करते हैं।
.... गज़ब के अशआर सर ... इस दिलकश अहसासों की खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं आदरणीय।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2017 at 9:00pm
क्या ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..बधाई
Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 3:59pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी पर आपका मश्कूर हूँ,,,
Comment by Ravi Shukla on November 7, 2017 at 3:08pm
आदरणीय अफरोज साहब बहुत खूबसूरत गजल हुई । फूल में खुशबू के कई बाब हुआ करते हैं यह शेर खास तौर पर पसंद आया शेर दर शेर दिली मुबारकबाद कुबूल करें
Comment by Afroz 'sahr' on November 7, 2017 at 3:02pm
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी ग़ज़ल में शिरकत और सुख़न नवाज़ी का शुक्रिया,,,
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 7, 2017 at 2:48pm

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है आ जनाब अफरोज सह्र जी मुबारकबाद कुबूल करे |

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