For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 1221 1221 122

माना कि तेरे दिल की इनायत भी बहुत थी ।
पर साथ इनायत के हिदायत भी बहुत थी ।।

आते थे वो बेफिक्र मेरे शहर में अक्सर ।
तहजीब निभाने की रवायत भी बहुत थी ।।

महंगे मिले हैं लोग मुहब्बत के सफ़र में ।
यह बात अलग है कि रिआयत भी बहुत थी।।

चेहरे को पढा उसने कई बार नज़र से ।
महफ़िल में तबस्सुम की किफ़ायत भी बहुत थी ।।

वो हार गए फिर से अदालत में सरेआम ।
हालाकि नजीरों की हिमायत भी बहुत थी ।।

छूटी हैं किताबें भी वही उस से अभी तक ।
जिस पर लिखी कुरआन की आयत भी बहुत थी ।।

क्यों पूछ रहे हैं मेरे दिल का वो फ़साना ।
उनको तो मुहब्बत से शिकायत भी बहुत थी ।।

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:36pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , आदरणीय समर भाई जी की सलाहों कर गौर कीजियेगा ।

Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:33am
आद0 नवीन मणि जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।
Comment by Mohammed Arif on August 23, 2017 at 11:05pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ने आदाब, अच्छी ग़ज़ल, अच्छे अश'आर । मुबारकबाद क़ुबूल करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बातों पर ग़ौर करें ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2017 at 2:33pm
हार्दिक बधाई....
Comment by Samar kabeer on August 23, 2017 at 2:21pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'माना कि तेरे दिल की इनायत भी बहुत थी
लेकिन गिला के साथ हिदायत भी बहुत थी'
ऊला मिसरे में जब इनायत बहुत थी,तो सानी मिसरे में 'गिला'किस बात का,सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं,रवानी भी बढ़ जायेगी :-
'पर साथ इनायत के हिदायत भी बहुत थी'
तीसरे शैर में 'रियायत'ग़लत है,सही शब्द है "रिआयत" ।
'चहरे को पढ़ा था वो बहुत बार नज़र से'
इस मिसरे में रवानी नहीं है,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'चहरे को पढ़ा उसने कई बार नज़र से'
छटे शैर में भाव स्पष्ट नहीं हैं ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2017 at 10:38am
आ0 रवि शुक्ल जी सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 23, 2017 at 10:37am
भाई मोहित मिश्रा जी सादर आभार
Comment by Ravi Shukla on August 23, 2017 at 10:13am

आदरणीय नवीन मणि जी बहुत ही अच्‍छी गजलकही आपने दाद और मुबारक बाद पेश है । चेहरे को पढा था वो ये वाक्‍य कुछ असहज सा लग रहा है ।  सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service