For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस्लाह की गुज़ारिश के साथ एक ग़ज़ल पेश है (गुरप्रीत सिंह )

2122 -1212 -22

मुझ पे तू मेहरबां नहीं होता
मैं तेरा क़द्रदां नहीं होता।

बोलने वाले कब ये समझेंगे
चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता।

कोई अरमान हम भी बोते. . .गर
मौसम-ए-दिल ख़िज़ाँ नहीं होता।

ख्वाहिशो सीने पे न दस्तक दो
अब मेरा दिल यहां नहीं होता।

जो बचाए किसी को कातिल से
वो सदा पासबाँ नहीं होता।

चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर
वो कभी आसमाँ नहीं होता।
(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 925

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 25, 2017 at 9:44am

आदरणीय रवि सर जी,,, रचना की सराहना और आपके बहुमूल्य सुझावों के लिए बहुत धन्यवाद..
अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता,,,इस मिसरे को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन हो नहीं पा रहा किसी तरह

Comment by Ravi Shukla on July 24, 2017 at 1:11pm

आदरणीय गुरप्रीत जी  क्‍या कहने बहुत अच्‍छे अशआर खास तौर पर ये दो अश्‍आर हमें बहुत पसंद आए

बोलने वाले कब ये समझेंगे
चुप है जो बेज़ुबां नहीं होता।   वाह वाह

चाहे कितना उठे धुआँ ऊपर
वो कभी आसमाँ नहीं होता।  बहुत खूब गुरप्रीत जी

अब बात करे मतले की तो विद्वत जन की राय आ चुकी है फिर भी एक नजरिया है देखने का मतले को ऐसे कर के देखे

तू अगर महरबां नहीं होता

मै तेरा कद्रदां नहीं होता

अब मेरा दिल यहॉं नहीं होता इस के वाक्‍य विन्‍यास में कुछ कमी लग रही है । धुआं चाहे जितना उपर उठ ले वो आकाश नहीं बन सकता यो धुआं चाहे कितना उपर उठ ले वो आकाश नहीं बन सकता । इन दो वाक्‍यों के अनुसार आप जितना और कितना के अंतर और अपने भाव के अनुसार उसके प्रयोग को समझ सकते है । सादर

Comment by vijay nikore on July 24, 2017 at 12:07am

भाव बहुत ही दिलकश हैं ... रचना अच्छी लगी। बधाई।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 23, 2017 at 1:07pm

बहुत खूब 

Comment by narendrasinh chauhan on July 21, 2017 at 1:08pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Samar kabeer on July 21, 2017 at 10:42am
'ख़्वाहिशो मत टटोलो सीने में'
ये ऊला मिसरा तो सही हो गया,इसी तरह सानी मिसरा भी बदलने की कोशिश करें ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on July 21, 2017 at 9:16am

शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी,,,   जी सहमत हूँ उस्तादों से सीखने की कोशिश है और रहेगी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 21, 2017 at 9:15am

शुक्रिया आदरणीय गिरिराज  जी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 21, 2017 at 9:14am

शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 21, 2017 at 9:14am

शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय समर कबीर जी,, इस मंच पर अपनी रचना लेकर आने का यही मकसद होता है की अपनी कमियों को जान सकें,, और उन में सुधर की कोशिश करें,,चौथे शेर में रदीफ़ काम करेगा,, इस के बारे में मुझे सन्देह तो था,, लेकिन कन्फर्म नहीं था, अब बात स्पष्ट हो गई,,
सर जी अगर इस शेर के सानी मिसरे के दोष को एक पल के लिए नज़रअंदाज़ करते हुए केवल ऊला मिसरे की बात हो तो क्या ऐसा कुछ कहना उचित होगा,,
"ख्वाहिशो मत टटोलो सीने में" या "ख्वाहिशो मत टटोलो सीने को"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service