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मुहब्बत की दावत: ग़ज़ल: हरि प्रकाश दुबे

122--122 / 122--122

मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत लिखेंगे,

अलावा नहीं कुछ हिमाकत लिखेंगे !

 

नहीं कल्पना ही लिखेंगे यहाँ अब,

लिखेंगे तो बस हम हकीकत लिखेंगे!

 

लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें,

सलामत अगर हैं सलामत लिखेंगे!

 

मुहब्बत ही करते रहें हैं यहाँ जो ,

ग़ज़ल दर ग़ज़ल हम मुहब्बत लिखेंगे!

 

ग़ज़ल जब लिखेंगे तुम्हारे लिए तो,

कसम से तुम्हें खूबसूरत लिखेंगे!

 

इशारा हमें जो किया आपने है ,

इसे हम मुहब्बत की दावत लिखेंगे!

 

गये छोड़कर के मिरे पास में दिल,

मुहब्बत की उसको वसीयत लिखेंगे!

 

नहीं लिख सका गर मुहब्बत की बातें ,

खुदा की अजी हम इबादत लिखेंगे!  

 

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे

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Comment by vijay nikore on July 21, 2017 at 11:20am

गज़ल अच्छी लगी, आनन्द आ गया। हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2017 at 8:51pm
बहुत खूब..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 20, 2017 at 8:26pm

आदरनीय हरि प्रकाश भाई , बढिया गज़ल कही है .. दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें । बाक़ी बात आ. रवि भाई कह हे चुके हैं , खयाल कीजियेगा ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 19, 2017 at 9:42pm
आदरणीय हरी प्रसाद जी..अच्छी ग़ज़ल कही है आपने...आदरणीय रवी सर ने जिन अशआर पर सलाह दी है ,उसे केन्द्र में रख कर आप और अशआर में भी सुधार कर सकते हैं..
ग़ज़ल जब लिखेंगे तुम्हारे लिए तो,
कसम से तुम्हें खूबसूरत लिखेंगे!

इशारा हमें जो किया आपने है ,
इसे हम मुहब्बत की दावत लिखेंगे!
ये दोनों शेर मुझे बहुत पसंद आए..
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 19, 2017 at 12:36pm

अच्छा भाई जी धन्यवाद् |

Comment by Samar kabeer on July 19, 2017 at 12:26pm
मात्रा गिराई जायेगी बहना ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 19, 2017 at 12:23pm

आदरणीय समर भाई जी आदाब , यहाँ गर झूठी बाते करते है तो मात्राओं की गणना किस तरह से होगी यह तो बदल जाएगी न | कृपया मार्गदर्शन दे | सादर|

Comment by Samar kabeer on July 19, 2017 at 12:09pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
बाक़ी बातें जनाब रवि शुक्ला साहिब विस्तार से बता ही चुके हैं,उस पर ग़ौर कीजियेगा ।
Comment by Ravi Shukla on July 19, 2017 at 10:43am

आदरणीय हरि प्रकाश जी गजल का बेहतर प्रयास हुआ है मुहब्‍बत को केंद्र बना कर बढि़या अशआर कहे है आपने मुबारक बाद पेश करते है ।

इशारा हमें जो किया आपने है , इसके अल्‍फाज के क्रम को वाक्‍य विन्‍यासके अनुसार देखें तो  इशारा हमें आपने जो किया है करें तो कैसा रहेगा ।

गये छोड़कर के मिरे पास में दिल, इस मिसरे में छोड़ कर  के यहां कर के बाद के असहज सा लग रहा है इसे भी बदल सकते है आप  

मेरे पास दिल वो गये छोड़कर जो  जैसे विकल्‍प पर विचार कर सकते है

लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें, इसमिसरे में आदरणीया कल्‍पना जी सही कह रही है आप झूठी बाते कह सकते है

इसी तरह आखिरी शेर में भी कुछ बेहतर की गुंजाइश है । सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 19, 2017 at 10:25am
खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय दुबे जी..सादर

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