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तरही ग़ज़ल, जनाब निलेश 'नूर' साहिब की नज़्र

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

बताऊँ,कैसे शब-ए-इन्तिज़ार गुज़री है
मेरे हवास पे होकर सवार गुज़री है

यही तो होता है हर शब हमारे सीने पर
ग़मों की फ़ौज बनाकर क़तार गुज़री है

न जाने कितनी तमन्नाओं का लहू पीकर
बड़ी ही धूम से फ़स्ल-ए-बहार गुज़री है

तुम्हें ख़बर ही नहीं है कि ये शब-ए-हिज्राँ
किसी ग़रीब का करके शिकार गुज़री है

तुम्हारा साथ जहाँ तक रहा वहाँ तक तो
हयात मेरी बहुत शानदार गुज़री है

हमारी नस्ल भी मग़रिब की तर्ज़ पर देखो
बनाके जिस्म पे नक़्श-ओ-निगार गुज़री है

समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 20, 2017 at 1:14pm

वाह वाह और वाह आ. समर सर...
मुझ से एक मिसरा भी नहीं बन पाया अभी तक ....
क्या कहने .... शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by Sushil Sarna on May 20, 2017 at 12:42pm

बताऊँ,कैसे शब-ए-इन्तिज़ार गुज़री है
मेरे हवास पे होकर सवार गुज़री है

यही तो होता है हर शब हमारे सीने पर
ग़मों की फ़ौज बनाकर क़तार गुज़री है

किसी मक़तल से बच जाऊं तो वो खुशी नसीब न होगी जो आपके अल्फ़ाज़ों पे मरके मिलती है। गज़ब के अशआर हैं सर .... इस बेहतरीन ग़ज़ल के हर शेर पर दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं आदरणीय समर कबीर साहिब।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 20, 2017 at 11:47am

 
 आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 20, 2017 at 11:23am
सम्माननीय समर कबीर साहिब जी... क्या ही शानदार ग़ज़ल पढ़ने मिली है..बहुत ज़बर्दस्त
तुम्हें ख़बर ही नहीं है कि ये शब-ए-हिज्राँ
किसी ग़रीब का करके शिकार गुज़री है
ये शेअर टी मुझे बहुत लम्बे समय तक याद रहेगा
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 20, 2017 at 10:43am
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ,शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by Mohammed Arif on May 20, 2017 at 10:28am
बताऊँ, कैसे शब-ए-इ़तिज़ार गुज़री है,
हवस पे होकर सवार गुज़री गुज़री है । कमाल है!कमाल है!!
न जाने कितनी तमन्नाओं का लहू पीकर ,
बड़ी ही धूम से फ़स्ल-ए-बहार गुज़री है । वल्लाह कमाल!उस्तादों वाला शे'र
हमारी नस्ल भी मग़रिब की तर्ज़ पर देखो,
बनाके जिस्म पे नक्श-ओ-निगार गुज़री है । वाह!वाह!! क्या ख़ूब टैटू संस्कृति पर तंज़ कसा है । बहुत ही सामयिक शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

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