For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

बस किसी अवतार के आने का रस्ता देखना
बस्तियाँ जलती रहेंगी, तुम तमाशा देखना.
.
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.
.
देखने से गो नहीं मक़्सूद जिस बेचैनी का
हर कोई कहता है फिर भी उस को “रस्ता देखना”  
.
क़ामयाबी दे अगर तो ये भी मुझ को दे शुऊ’र 
किस तरह दिल-आइने में अक्स ख़ुद का देखना.
.
चाँद में महबूब की सूरत नज़र आती नहीं   
जब से आधे चाँद में आया है कासा देखना.
.
तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1640

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:23pm

आ. मनन जी,
.
फ़ैसले कर रहे हैं अर्श-नशीं
आफ़तें आदमी पे आती हैं
...
अहमद नसीम काज़मी 
.
हम तो आए थे अर्ज़-ए-मतलब को
और वो एहतिराम कर रहे हैं

जौन एलिया 
.
सुनो लोगों को ये शक हो गया है
कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं

फ़हमी बदायुनी 
.
क्यूँ हश्र का क़ौल कर रहे हो
'मुज़्तर' को यहीं की आरज़ू है

मुज़्तर खैराबादी (जावेद अख्तर के दादा)
.
जान-ए-ख़ुलूस बन कर हम ऐ 'शकेब' अब तक
ता'लीम कर रहे हैं आदाब ज़िंदगी के

शकेब जलाली 
.
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं

हफ़ीज़ जालंधरी .
.
एक पैकर में सिमट कर रह गईं
ख़ूबियाँ ज़ेबाइयाँ रानाइयाँ

कैफ़ भोपाली 
.
जहाँ इश्क़ में डूब कर रह गए हैं
वहीं फिर उभरने को जी चाहता है

शकील बदायुनी 
.
जो बिखर कर रह गया है इस जगह
हुस्न की इक शक्ल भी है उस तरफ़

मुनीर नियाजी 
.
इक आह-ए-सर्द बन कर रह गए हैं
वो बीते दिन वो याराने पुराने

हबीब जालिब 
.
क्या मिरी तक़दीर में मंज़िल नहीं
फ़ासला क्यूँ मुस्कुरा कर रह गया

वसीम बरेलवी 
.
सर पटकने को पटकता है मगर रुक रुक कर 
तेरे वहशी को ख़याल-ए-दर-ओ-दीवार तो है
..
रुक कर 
फ़िराक गोरखपुरी ..
...
हरि अनंत हरि कथा अनंता ..
कहने का अर्थ यही है कि रुक कर या ...कर रहा सादर इतने रचे बसे जुमले हैं कि इस में ऐब नहीं है ..
सादर 

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:08pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब... 
डिक्शनरी देख लें मद्दाह की ...शुऊर ही सही   शब्द है ,,,
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 9:07pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी (पता नहीं ज के बाद जी लिखने में भी ऐब न हो जाये)
सादर  

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 5, 2017 at 8:45pm
मुहतरम जनाब नीलेश साहिब,बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ---शेर4 में टाइप में शऊर का शुऊर हो गया है,"दिल आइना" कोई शब्द है क्या? देख लीजियेगा --सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:26pm

आदरणीय नीलेश भाई , बेहतरीन शे र कहे हैं आपने , पूरी गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.    ---- विशेष बधाइयाँ ।

Comment by Manan Kumar singh on May 5, 2017 at 7:45pm
जैसी मर्जी,आदरणीय;जो दिखा,सो कह दिया,सादर
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 6:55pm
छाँव तो फिर छाँव है लेकिन किसी बरगद तले
धूप खो कर जल न जाये कोई पौधा, देखना.

तीरगी फिर कर रही है घेरने की कोशिशें,
“नूर” है तेरा इसे तू ही ख़ुदाया देखना.

आदरणीय नीलेश जी एक और शानदार ग़ज़ल केलिए आपको बहुत बहुत बधाई
Comment by Mohammed Arif on May 5, 2017 at 5:48pm
आदरणीय नीलेश जी आदाब, लाजविब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अफनी राय दे चुके हैं ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 4:38pm

शुक्रिया आ. हेमंत जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 4:38pm

शुक्रिया आ. समर सर..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service