For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल्ली दूर है(लघुकथा)राहिला

एक बेहद पिछड़े ,सुविधाओं से कोसो दूर गाँव में अचानक कुपोषण से हुयी बच्चों की अकाल मृत्यु ने प्रशासन को गहरी नींद से जगा दिया। और इस दिशा में चल रही तमाम योजनाओं की जैसे कलई खुल गयी।आननफानन में शहर से चिकित्सकों का दल नाक मूँदे वहां पंहुचा । कई नये चिकित्सकों का तो ऐसे गाँव से ये पहला परिचय था।सब चौपाल पर इकठ्ठे हो चुके थे।
"देखिये!आप सबसे पहले ये जान लें कि कुपोषण की मुख्य वजह क्या हैं?जिसके चलते यह दुखद घटना हुयी है।"एक नई महिला चिकित्सक धारा प्रवाह बोलते हुए ,टंगे बड़े से पोस्टर पर लिखी बातें और चित्र दिखा कर समझाने की कोशिश करने लगी ।अधिकतर महिलाएं घूँघट से एक आँख निकाले, सिर के ऊपर से निकलने वाली उनकी बातें सुन रहीं थीं ।क्योंकि बात संतुलित आहार से भरी थाली की हो रही थी।
"होता क्या है ,अक्सर छोटे बच्चे खाने में नखरे करते हैं ऐसे में आपको चाहिए।आप उन्हें विविध प्रकार के स्वाद बनाकर संतुलित भोजन कराएँ ।" बोलना जारी था। ये जाने बगैर कि इतनी देर मुँह बजाने का कोई नतीजा निकल भी रहा है या नहीं ।
तभी पेड़ पर बैठे कौए के मुँह से एक रोटी का टुकड़ा नीचे गिरा ,जिसे पास बैठे बच्चे ने लपक लिया और खाने लगा।ये देख कर कुर्सी पर बैठे दो तीन मास्क के अंदर से एक साथ चिल्लाये-
"अरे.....अरे... ,उससे वापस लो ,मत खाने दो!"
लेकिन बच्चे के हाथ से रोटी का टुकड़ा लेने की जगह पास बैठी वृद्धा बोली उठी।
" खा लेने दो कछु नई हो रओ डाक्टरनी जी!इतें बच्चा खावे -पीवे में नखरा करवो नहीं जानत ,इतें तो खावे को मिलना चईये बस।"
मौलिक एवं प्रकाशित

Views: 687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on March 6, 2017 at 3:40pm

बढ़िया लघुकथा है आ. राहिला जी। हार्दिक बधाई प्रेषित है। सादर।

Comment by Rahila on March 6, 2017 at 11:07am
आदरणीय रवि सर जी!नमस्कार,सबसे पहले तो बहुत दिनों बाद अपनों रचना पर आपकी उपस्थिति देख कर अत्यंत प्रसन्नता हुयी। सर जी आपकी सलाह ,मार्गदर्शन सर आँखों पर ।लेकिन जिस बात पर रचना ने नाटकीय रूप लिया शायद मेरे लिए बड़ी सहज घटना थी। मेरे घर के आंगन में लगे आम के पेड़ पर बैठ ,कौए अक्सर कुछ न कुछ गिरते ही रहते है जिसे देखकर ये बात मेरे मन में आई।इस मामले में मेरी कल्पना की उड़न जरा कमजोर है। सादर
Comment by Rahila on March 6, 2017 at 10:55am
आदरणीय तेजवीर सरजी!,आदरणीय आरिफ़ साहब!,आदरणीय मिश्रा सर!,आदरणीया राजेश दीदी!और आदरणीय चंद्रेश सर जी!रचना की सराहना और हौसला अफजाई के लिए बहुत आभार ,शुक्रिया। सादर
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 6, 2017 at 10:37am

बहुत अच्छी रचना कही है राहिला जी, आदरणीय रवि प्रभाकर जी सर की बातों पर ध्यान देकर सुधार करें तो बेहतर हो जायेगी, सादर

Comment by Ravi Prabhakar on March 4, 2017 at 8:26pm

प्रिय छोटी बहन राहिला, प्रस्‍तुत लघुकथा के शीर्षक ने बहुत प्रभावित किया । परन्‍तु ऐसे कथानकों की प्राकाम्‍यता है जो अक्‍सर चौथी पांचवी लघुकथा में देखने को मिल जाते हैं। /तभी पेड़ पर बैठे कौए के मुँह से एक रोटी का टुकड़ा नीचे गिरा ,जिसे पास बैठे बच्चे ने लपक लिया/ इस पंक्‍ित में नाटकीयता बहुत अधिक हो गई जिससे लघुकथा की स्‍वभाविकता पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगा दिया है। कहा जाता है कि लघुकथा पढ़ने के बाद एक 'झटका' सा लगना चाहिए, अब इस 'झटके' को समझना होगा । इस झटके को स्‍थूल अर्थ में लेकर इसके वास्‍तिवक अर्थ को समझना होगा। आदरणीय शंकर पुण्‍तांबेकर जी के अनुसार यह झटका 'बौद्धिक झटका' होना चाहिए। खैर ! प्रयासरत रहें क्‍योकि लघुकथा विधा पर आपकी पकड़ बहुत प्रशंसनीय है और आपकी 'भगौड़ा' सरीखी लघुकथा पाठक काे सदैव याद रहेगी। प्रस्‍तुत कथा में भी /आननफानन में शहर से चिकित्सकों का दल नाक मूँदे वहां पंहुचा ।/ नाक मूंदे सहजे ही गांव की दशा बयां कर रहा है। सिर्फ दो शब्‍दों में गांव की दुर्दशा का जो चित्रण किया है वह अत्‍यंत प्रशंसनीय है। भविष्‍य के लिए शुभकामनाएं । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 4, 2017 at 7:44pm

ओह्ह्ह्ह ये लघु कथा अंदर तक झकझोर गई सच में बातें सब बना देते हैं राय देना आसान है कुपोषण क्यूँ हो रहा है उनके पास खाने को क्या है ये देखने वाला कोई नहीं .बहुत बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा पर प्रिय राहिला जी |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 4, 2017 at 3:13pm

आदरणीया राहिला जी ..रचना के माध्यम से आपने यथार्थ को बड़े ही शानदार तरीके से पेश किया है .इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Mohammed Arif on March 4, 2017 at 2:22pm
आदरणीय राहिला जी आदाब,बेहतरीन लघुकथा के लिए बधाई क़ुबूल करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2017 at 12:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी। बेहतरीन कटाक्ष करती सुन्दर लघुकथा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
19 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
19 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service