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पर्दा(लघुकथा)राहिला

मंदिर के पीछे मिले लावारिस नवजात शिशु को लेकर आज पंचायत जुटी थी। पंचायत ने अपने स्तर से बहुत पड़ताल की, परन्तु कोई सुराग हाथ नहीं लगा। कोई कह रहा था, ‘छोरी तो बहुतेरी मिलीं लावारिस, लेकिन आज ये छोरा?’ किसी ने कहा, ‘ खूब जान पड़ता है, जरूर नाजायज रहा होगा।’ जितने मुँह उतनी बातें। अब पंचायत चाहती थी कि यदि कोई दम्पति बच्चे को गोद लेना चाहे तो मामला यहीं निपट जाए। वर्ना बच्चा पुलिस को तो सौंपना ही था।
"सरपंच जी ! मैं और मेरी घरवाली यशोदा इस बच्चे को गोद लेना चाहे हैं।"
पंचों को प्रणाम कर,किशन ने खड़े होकर अपनी मंशा रखी।
"अरे किशन ! तू कब आया शहर से ? ये तो बहुत अच्छी बात है तू और तेरी घरवाली इस बात के लिए राज़ी हैं।" निःसंतान किशन को आगे आया देख सरपंच खुश होकर बोले।
"कल रात ही आया सरपंच साहब! अब इसे संयोग ही कह लें। होली पर आता मगर फैक्ट्री के काम से इस ओर आना हुआ तो सोचा एकाध दिन घर रूकता चलूँ।"
"बहुत बढ़िया किया ! भगवान् ने शायद तेरे भाग्य से ही इस छोरे को यहाँ भेजा है।" कह कर वह उपस्थित अन्य पंचों से कुछ सलाह मशवरा करने लगे।
और अंततः फिर बोले, " तो हो गया फैसला ये छोरा पंचायत के हवाले से किशनलाल और उसकी पत्नि यशोदा को सौंपा जाता है। आओ और सम्हालो !"
यशोदा ने तुरंत आगे बढ़कर बच्चे को अपने आँचल में भर लिया। फिर कुछ कागज़ी कार्यवाही के बाद वे दोनों बच्चे को घर ले आये।
बच्चा भूखा था शायद इसलिए दम नहीं ले रहा था। यशोदा किशन को पौर में छोड़, बच्चे को ले अटारी में आ गयी। बच्चा अपनी अविवाहित ननद की गोद में डाल कर बोली, ‘‘ले सम्हाल इसे ये भूखा है। सूनी गोद तो मेरी भर गई है, पर अंश तो तेरा ही है यह।" सहमी हुई सगुना कभी अपनी भाभी को देख रही थी तो कभी अपने नवजात को।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:47pm
बहुत बढ़िया संदेश देती लघुकथा लिखी है आपने आ. राहिला जी। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Nita Kasar on March 7, 2017 at 2:48pm
पर्दे की ओट में भाभी नन्द के रिश्ते को ख़ूबसूरती से व्यक्त करती बढ़िया कथा है दिली बधाई प्रिय राहिला जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 6, 2017 at 7:25pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी।वाह, क्या बेहतरीन विषय चुना है और उसे बड़ी कुशलता से निभाया है।बहुत शानदार लघुकथा।

Comment by Mohammed Arif on March 6, 2017 at 7:08pm
आदरणीया राहिला जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा । नादानी हो जाती है मगर साहस कोई नहीं दिखाता है । आपकी यशोदा ने साहसिक क़दम उठाकर अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है । बधाई क़ुबूल करें ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 6, 2017 at 4:25pm

आदरणीया राहिला जी ..आपकी यह लघु कथा अब तक आपकी सर्वाधिक प्रिय लघुकथाओं में से एक है / कमाल की सोच है इस सोच के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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