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कोई तो मरा है (लघुकथा)

भोजन कक्ष में बैठ कर परिवार के सभी सदस्यों ने भोजन करना प्रारंभ किया ही था कि बाहर से एक कुत्ते के रोने की आवाज़ आई। घर की सबसे बुजुर्ग महिला यह आवाज़ सुनते ही चौंकी, उसने सभी सदस्यों की तरफ देखा और फिर चुपचाप भोजन करने लगी।

 

उसने मुश्किल से दो कौर ही खाये होंगे और कुत्ते के रोने की आवाज़ फिर आई, अब वह बुजुर्ग महिला चिंताग्रस्त स्वर में बोली, "यह कुत्ता क्यों रो रहा है?"

 

उसके पुत्र ने उत्तर दिया, "चिंता मत करो, होगी कुछ बात।"

 

"नहीं! यह तो अपशगुन है।" बुजुर्ग महिला ने उसकी बात नकारते हुए कहा

 

उनकी बातें ध्यान से सुनता हुआ उस महिला के पोते ने मसूमियत से पूछा, "अपशगुन क्या होता है दादी?"

 

महिला की बहु ने टोका, "कुछ नहीं होता बेटे, आप खाना खाओ।"

 

कुत्ता रह-रहकर रो ही रहा था।

 

बुजुर्ग महिला ने चिंतित स्वर में अपने बेटे से कहा, "उसे भगा दे, कहते हैं कुत्ता यमदूत को देख कर रोता है।"

 

सुनते ही पोते को कोई कहानी याद आई और वह चहकते हुए बोला, "दादी, आप सच कह रही हैं, यमदूत आया होगा।"

 

सभी आश्चर्य से पोते की तरफ देखने लगे, और उसने कहा,

"यमदूत उस मुर्गे को लेने आया होगा, जिसे हम खा रहे हैं।"

 

उसके स्वर में अभी भी मासूमियत थी।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 27, 2017 at 9:09am


सादर आभार आदरणीया राजेश कुमार जी, आदरणीया सीमा मिश्रा जी, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आदरणीय समर कबीर साहब, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी, आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, आपको यह प्रयास ठीक लगा, आप सभी की टिप्पणीयों ने मेरा मनोबल उच्च किया है| आप सभी का पुनः धन्यवाद

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 3:52pm

आदरणीय चंद्रेश जी ...आपकी लघु कथा बेहद पसंद आयी आदरणीय शेख जी और आदरणीय मिथिलेश जी की प्रतिक्रियाओं से तथ्यों को समझने में बहुत मदद मिली   अलहदा अंदाज की इस शानदार लघुकथ के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by pratibha pande on January 20, 2017 at 9:06am

शगुन अपशगुन के ढकोसले और बाल सुलभ मन ..सुन्दर ताना बाना  बुना है आपने  हार्दिक बधाई आपको आदरणीय चंद्रेश जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2017 at 8:25pm
रचना में बहू का संवाद भी एक अनकहा-संदेश वाहक संवाद है जिसे पाठक अपने तरीक़े से ले सकते हैं। बहू नहीं चाहती कि उसका बेटा अंधविश्वास युक्त बातों या दादी की बात पर ग़ौर करे!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2017 at 7:57pm
'कोई तो मरा है!'- शीर्षक जहाँ रचना के बारे में जिज्ञासा बढ़ाता है , वहीं लघुकथा के कथ्य व तथ्य का आरंभिक संकेत भी देता है। ज़मीर/ग़रीब/अमीर/वृक्ष/फूल/पशु/पक्षी/जंगल/मंगल/या फिर पर्यावरण संतुलन...कोई तो मरा है रचना में! लेकिन जब लघुकथा डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहब की ही हो, तो कुछ विशेष व अद्वितीय तो होगा ही न! पाठक रचना पढ़ने लगता है। बूढ़े पात्र व अपशगुन की बात पढ़कर पुराने कथानक का परिचय होने लगता है, किन्तु अभी भी मासूम पोता लघुकथा को पढ़ने में दिलचस्पी को बढ़ाता जाता है। पंचपंक्ति युक्त बालसुलभ हाज़िर जवाबी क्रिकेट मैच के लास्ट ओवर की अंतिम गेंदों में दो-तीन छक्के लगाती हुई कथ्य सम्प्रेषण और पाठक मन में विचार सृजन कर अद्भुत शतक बनाती हुई हमारे प्रिय वरिष्ठ लघुकथाकार को चैम्पियनशिप दिला देती है। सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी। शीर्षक मेरे विचार से 'शुभसगुन' भी हो सकता था पोते के सकारात्मक बाल-चिंतन के मद्देनज़र, वरना अंधविश्वास को बढ़ावा देती रचना का वहम भी तो हो सकता है। कोई तो मरा है, इसलिए कुत्ते का रोना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या सही है? कोई तो मरा है, यदि मांसाहार/हिंसा करने वाले मानव के ज़मीर के मरने को इंगित करता है तो रचना बेहद तंजदार/ व्यंगात्मक हो जाती है। पुनः बहुत बहुत बधाई।
Comment by Nita Kasar on January 19, 2017 at 7:18pm
कुत्ते को प्रतीक बना उम्दा कथा लिखी है।बालसुलभ जिज्ञासाओं का सामना करना मुश्किल होता है ,पर बच्चे बड़ों को सिखा भी देते है।बधाई आपको आद० चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by Mohammed Arif on January 19, 2017 at 5:58pm
आदरणीय चंद्रेशजी, नमस्कार ! बेहतरीन व्यंग्यात्ममक लघुकथा के लिए बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 19, 2017 at 4:00pm
आदरणीय चंद्रेश जी सादर अभिवादन, क्या अंत रखा इस लघुकथा का, जिज्ञासा को इस तरह तृप्त किया आपने, बढ़ी स्वीकार करें, सादर
Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 2:19pm
जनाब डॉ.चन्द्रेश जी आदाब,बहुत बढ़िया लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 1:10pm
आदरणीय चंद्रेश जी आप किसी भी विषय को जिस बारीकी से देखते हैं वह मुग्धकारी हुआ करता है। बालसुलभ कथन की पंचलाइन प्रभावित करती है और लघुकथा को प्रभावशाली भी बनाती है। इस सफल प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

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