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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

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सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं

हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं

 

अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से

खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं

 

आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब

शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं

 

बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया

धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं

 

फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप

कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते हैं

 

Meanings:

अह्ले अदब – साहित्यकार, लाल – Ruby

बदख़्शाँ – अफ़गानिस्तान का एक प्रांत जो बेशकीमती लाल(Ruby) के लिए प्रसिद्ध है

आमाल – आचार व्यवहार, पशेमाँ – शर्मिंदा

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 19, 2017 at 6:18pm

ग़ज़ल को मुहब्बतों से नवाज़ने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2017 at 4:20pm

आदरणीय शिज्जु भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Abhishek kumar singh on January 12, 2017 at 9:36pm
बहुत खूब
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 12, 2017 at 8:47pm
बेहद खूब आदरणीय ...बधाइयाँ
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 12, 2017 at 8:36pm
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल मोहतरम दिली दाद है।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 12, 2017 at 7:09pm

मुहतरम जनाब शकूर साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Sushil Sarna on January 11, 2017 at 7:19pm

सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं

बहुत खूब आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब .... खूबसूरत अहसासों से सजे अशआर ग़ज़ल को नया आयाम दे रहे हैं। इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Mohammed Arif on January 11, 2017 at 5:18pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल । ढेरों बधाईयाँ !

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2017 at 3:33pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी, आपने बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है, एक से बढ़कर एक अशआर कहे है आपने.  शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 2:53pm
आद0 शिज्जू शकूर जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा ग़ज़ल आपने कही, किसी एक शैर को क्या कहूँ, सभी एक से बढ़कर एक, दाद हाजिर है, मुबारकबाद कबूल फरमाएँ। सादर

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