For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल

1222  1222  1222  1222

 

अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I

सदा दी होती जो  तुमने  शरारत ओर हो जाती II

 

पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,

वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I

 

कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?

अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I

 

बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,

पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I

 

मुझे तो होश में लाकर भी क्यों ना मुस्कराए तुम?

जहां सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती I

 

दिया होता जो चलना बेटियों को अपने पांवों पर,

न होता वितकरा उनसे रिवायत और हो जाती I

 

रखा था क्यों छुपा कर प्यार उनसे दिल में यूं 'कंवर'?

अगर इजहार करते तो नफ़ासत और हो जाती I

 

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 964

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कंवर करतार on August 17, 2017 at 9:55pm

भाई श्याम बर्मा जी ,नवाज़िश के लिए शुक्रिया I

Comment by Shyam Narain Verma on August 17, 2017 at 3:44pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय
Comment by कंवर करतार on August 17, 2017 at 12:38pm

लक्ष्मण धामी जी आपका बहुत बहुत आभारI

Comment by कंवर करतार on August 17, 2017 at 12:10pm

भाई सुरेद्र ,ग़ज़ल पर आपकी नजर पड़ी ,धन्यवादI 

Comment by कंवर करतार on August 17, 2017 at 12:08pm

आरिफ भाई हौसलाअफजाई के लिए आभार I

Comment by कंवर करतार on August 17, 2017 at 12:07pm

शुक्ला जी ,शेर के बज्न में सुधार के लिए आभार I  

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:26am
हार्दिक बधाई।
Comment by Mohammed Arif on August 15, 2017 at 8:03pm
आदरणीय कँवर करतार जी आदाबग़ज़ल का अच्छा प्रयास ।मुबारकबाद क़बूल कीजिए । आली जश ब मोहतरम समर कबीर साहब और आदरणीय रवि शुक्ल जी के सुझावों पर गौर करें ।
Comment by surender insan on August 15, 2017 at 6:37pm
आदरणीय डॉक्टर कंवर करतार साहब आदाब। ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है।बधाई स्वीकार करे जी । यक़ीनन अभी ग़ज़ल और मेहनत मांग रही है। अभ्यास से धीरे धीरे खुद ब खुद निख़ार आएगा। गुणीजनों की राय पर गौर करियेगा जी। सादर जी।
Comment by Ravi Shukla on August 14, 2017 at 2:54pm

आदरणीय कंवर करतार जी  आपकी गजल पढ़ी  बहुत बहुत बधाई आपको 

दूसरा शेर देखिये  बहर खारिज हो रही है लफ्ज का उच्‍चारण कर के देखिये उसी के अनुरूप उसका वज्‍न तय होगा

नकावें पहन कर जिन पर हैं बरसाते कोई पत्थर , प हन 12  तो पहन का वज्‍न 12 होगा न कि 21

इसी तरह

अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I सुबकने  सु  बक ने 122 के वज्‍न में है

इसी तरह मकते में कंवर शब्‍द बहर मे नहीं है

न होता वितकरा उनसे रिवायत और हो जाती I  यहां वितकरा शब्‍द का अर्थ नहीं समझ पाए स्‍प्‍ष्‍ट करियेगा । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"1212    1122    1212    22 /  112 कि मर गए कहीं अहसास…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service