For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माता मैं ना जाऊँगा

कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,

तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |

अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है

भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||

 

 

रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,

जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |

देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,

तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||

 

 

दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे आऊँगा,

अपने चरणों में रहने दे , तेरे ही गुण गाऊँगा |

भेज न मुझको दूर कहीं तू, माता मैं ना जाऊँगा,

दूर गया तो कैसे तुझ सी, माता फिर मैं पाऊँगा ||

 

मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:03pm

माँ से बढ़कर कोई नहीं |  बेहद सुंदर रचना | हार्दिक बधाई सर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2016 at 9:57pm

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी सादर, प्रस्तुत रचना के भाव आप तक पहुँचे रचना सफल हुई है. आपका कहना उचित है. 'ये ईच्छाएं' के साथ 'थीं ' लिखना पडेगा. असावधानीवश यह त्रुटि हुई है. मैं इसे संशोधित कर लेता हूँ. " तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी" सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2016 at 9:53pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, रचना को सराहने के लिए आपका दिल से आभार. आपका सुझाव उत्तम है. मैंने वहां लिखा था 'ये ईच्छा भी मेरी थी' किन्तु चारों चरणों में आया 'भी' मुझे ठीक नहीं लग रहा था इसलिए बदलाव किया और वहीँ असावधानी हो गई. इस उत्तम सुझाव के लिए भी आपका हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2016 at 9:50pm

प्रस्तुत रचना पर उत्साहवर्धन करने के लिए आप सभी गुनीजनों का दिल से आभार आदरणीय भाई रवि शुक्ला जी, आदरणीय सुरेश कुमार जी, आदरणीय भाई शिज्जू 'शकूर' जी, आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, आदरनीय रामबली गुप्ता जी. सादर.

Comment by रामबली गुप्ता on September 22, 2016 at 5:39am
वाह आद० अशोक भाई जी बहुत ही सुंदर ताटंक हुआ है। बल भर बधाई लीजिये।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 6:54pm

आदरनीय अशोक भाई , पुत्र की भावनायें माता के प्रति मुखर हुई , इस छंद रचना से । बहुत खूब बहुत बधाइयाँ आपको ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 4:52pm

बच्चे  माँ-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए कितना कुछ ना चाहते हुए भी कर जाते है.... कैसी असमंजस की घड़ी को व्यक्त किया है आपने ताटंक छंद में आदरणीय अशोक रक्ताले जी ...कि वो न चाहते हुए भी जा रहा है, माँ न चाहते हुए भी भेजे ये उसकी चाह है...

बहुत सुन्दर भाव प्रवण प्रस्तुति 

बहुत बहुत बधाई 

//तुझको छोड़ कहीं जाऊँ कब , ये ईच्छाएं मेरी थी // ...इस चरण में तो थी थीं हो जाएगा न तब व्याकरणिक और तुकान्त दोनों में ही दोष होगा .....बस यहीं परिवर्तन अपेक्षित है..बकी बहुत खूबसूरत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:49pm

आ. अशोक रक्ताले सर अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 12:20pm
आदरणीय अशोक कुमार रक्ताताले जी बहुत ही सुन्दर रचना है । बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 19, 2016 at 11:11pm

आदरणीय अशोक भाईजी

सुंदर शब्द सुंदर भाव से युक्त सुंदर ताटंक छंद , हार्दिक बधाई

//// रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,

जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |

देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,

तुझको छोड़ कहीं जाऊँ कब , ये ईच्छाएं मेरी थी ||///

आदरणीय कुछ बदलाव के साथ इसे इस क्रम में लिखें तो .........

देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,

जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |

रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,

तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं , कब ये इच्छा मेरी थी || 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
10 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
18 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service