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‘वागीश्वरी’ सवैया पर एक प्रयास

१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२

भजो राम को या भजो श्याम को या, भजो नित्य ही मित्र माँ बाप को |

चुनों धर्म का मार्ग सच्चा हमेशा , बढ़ावा न देना कभी पाप को,

सिखाना सभी को सिखाना स्वतः को, भुलाना यहाँ व्यर्थ संताप को,

नई ये हवाएं कहें क्या सुनो तो, सुनो थाप को वक्त की चाप को ||

तजो लाज सारी करो कर्म अच्छे, रहोगे जहां में तभी शान से |

न लेना किसी का न देना किसी का, जिलाता यही मार्ग सम्मान से,

बिना कर्म पाते सभी दुःख देखो, नहीं शान्ति पाते मिले दान से,

इसे सीख जानो इसे ज्ञान मानो, मिला हो भले एक अन्जान से ||

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2016 at 8:53am

आदरनीय अशोक भाई , बहुत सुन्दर संदेश देते , इस प्रवाह मय सवैयों के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:56pm

आदरणीय भाई सत्यनारायण सिंह जी सादर, आप भी वागीश्वरी सवैये पर प्रयास करना चाहते हैं जानकर प्रसन्नता हुई है. आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए आपका दिल से आभार. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:55pm

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, आपको प्रस्तुत छंद पसंद आये मेरी रचना को मान मिला. सादर आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:51pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी सादर, आपको छंद अच्छे लगे इसके लिए दिल से आभार. आपके द्वारा प्रथम छंद में आये 'या' को पुनरुक्ति दोष की तरह देखा जा रहा है जबकि मुझे वह इसतरह तो कतई नहीं लग रहा है. "न लेना किसी का न देना किसी का" यह उक्ति समाज से सम्बन्ध तोड़ लेने के लिए प्रयुक्त नहीं होती यह लेन-देन की बुराई की ओर इंगित करती है. फिरभी यह मेरा छंद पर प्रयास ही है आपने छंद को जिस गहनता से पढ़ा है मैं उसके लिए आपका पुनः आभारी हूँ और आगे अवश्य ही आपके विचारों का  ध्यान में रखूंगा. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2016 at 9:42pm

प्रस्तुत सवैया छंदों को सराहने के लिए दिल से आभार आदरणीय सुशील सरना साहब.सादर.

Comment by Satyanarayan Singh on November 8, 2016 at 2:48pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी सादर,

 दोनो ही वागीश्वरी सवैये सुंदर रचे है आपका प्रयास सचमुच सराहनीय है.जो  मुझे  भी इस विधा को समझने और लेखन कार्य के लिये उत्प्रेरित कर राहा है. अतएव आपका मन से आभार तथा इस  प्रस्तुति हेतु सादर बधाई  

Comment by Samar kabeer on November 7, 2016 at 5:42pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत सुंदर वागीश्वरी सवैये लिखे हैं आपने जो अच्छा संदेश दे रहे हैं,और सबसे बढ़िया ये कि मुझे और बहुत कुछ सीखने को मिला,ख़ास कर सवैया का अंतिम 12 मेरे लिये बहुत उलझन पैदा कर रहा था,आपकी रचना से मेरी ये उलझन दूर हुई,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रामबली गुप्ता on November 7, 2016 at 3:50pm
आद0 अशोक भाई जी दोनों ही वागीश्वरी सुंदर हुए हैं हृदय से बधाई स्वीकार करें।
प्रथम सवैये के प्रथम पद में यति के पूर्व 'या' शब्द दो बार आने से पुनरुक्ति दोष प्रतीत हो रहा है जरा एक बार देख लीजियेगा।

दूसरे सवैये का तृतीय पद शेष अन्य तीनों पदों के साथ उतना प्रभावी नही लग रहा। ' न लेना किसी का न देना किसी का' यानि किसी से कोई सम्बन्ध न होना फिर सम्मान से जीने का क्या तातपर्य?

संभव है मैं आपके भावों तक न पहुंच पा रहा होऊं। एक पाठकीय दृष्टिकोण से ऐसा लगा सो लिखा। सादर
Comment by Sushil Sarna on November 7, 2016 at 1:20pm

आदरणीय रक्ताले साहिब इस दिलकश सवैये की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। 

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