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हर कली अब कमल हो रही है

212  212  212  2

 

जिन्दगी अब सरल हो रही है

बात हर इक गजल हो रही है 

 

दलदली हो चुकी है जमीं पर,

हर कली अब कमल हो रही है

 

तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें

नीति बेशक सफल हो रही है

 

आ रहा है कहीं से उजाला

रौशनी आजकल हो रही है

 

मखमली हो रही हैं हवाएं

मेंढकी भी विकल हो रही है

 

है दरोगा बड़ा लालची वो

धारणा अब अटल हो रही है

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 1, 2016 at 5:22pm
आदरणीय श्री अशोक कुमार रक्ताताले जी बहुत ही सुन्दर गजल हुई है। सस्नेह बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Harash Mahajan on August 1, 2016 at 4:06pm

आदरणीय अशोक जी इस खूबसूरत ग़ज़ल पर मुबारकबाद स्वीकार  करें !!

साभार !!

Comment by Ravi Shukla on August 1, 2016 at 3:27pm

आदरणीय अशोक जी  , क्या बात है , बहुत बढि़या गज़ल कही है , सभी अशआर क़ाबिले दाद हैं । मुबारकबाद कुबूल करें । बाकी के पांच शेर के मुकाबले एक शेर तुलनात्‍मक रूप से कम प्रभावित कर रहा है रोशनी आजकल हो रही है इस  शेर में बाकी शेर की तरह अर्थ का विस्‍तार हमें नहीं लगा । अन्‍यथा नहीं लीजियेगा । आप गाने में भी सुरीले है उज्‍जैन में पता चला था इस गजल को आपसे सुनना और भी अच्‍छा अनुभव होगा । सादर । 


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 11:17am

आदरणीय अशोक भाई , क्या बात है , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर क़ाबिले दाद हैं । मुबारकबाद कुब्प्प्ल कीजिये ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 1, 2016 at 7:09am
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है

तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है

आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है

बहुत खूब आदरणीय अशोक जी । हार्दिक बधाई स्वीकारें मान्यवर ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 29, 2016 at 6:05pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी सादर, प्रस्तुत गजल पर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका दिल से शुक्रिया. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 29, 2016 at 6:04pm

सादर आभार आदरणीय समर कबीर साहब, मैं आपके द्वारा इंगित शैर हटा लेता हूँ और एक बदलाव कर पुनः संशोधित गजल पोस्ट करता हूँ. आपका दिल से शुक्रिया. सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 29, 2016 at 5:39pm

आदरणीय अशोक जी इस उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Samar kabeer on July 29, 2016 at 2:46pm
"तितलियों"वाला मिसरा आपके बताये बिम्ब के अनुसार ठीक है,"रौशनी आजकल हो रही है" ये मिसरा ठीक रहेगा । लेकिन "मुग़ल"वाला शैर हटाना पड़ेगा,या कोई दूसरा क़ाफ़िया सोचियेग । ग़ज़ल पर पुनः बधाई आपको ।बाक़ी शुभ शुभ
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 29, 2016 at 1:33pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार. सादर. अच्छी सलाह है आपकी मैं आदरणीय समर साहब के विचारों को जान लूँ, फिर बदलाव करता हूँ. सादर.

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