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अक्षदण्ड या दोस्त (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

होटल में बेहतरीन पार्टी सम्पन्न होने के बाद आयोजक नवांकुर रचनाकार ने पार्टी देने का राज़ खोलते हुए अपने मित्रों से कहा- "आज सालगिरह है मेरे लघुकथा विधा से परिचित होने की और मेरी पहली लघुकथा इन्टरनेट पर प्रकाशित होने की!"

"पार्टी तो बढ़िया रही मित्र! लेकिन मुझे तुम्हारी लघुकथायें तो हमेशा अधूरी कथायें ही लगीं! कुछ और लिखा करो यार!" एक साथी ने कटाक्ष करते हुए कहा।

"अधूरी नहीं मित्र, धुरी कथायें! लघुकथा का कथ्य धुरी का काम करता है; ज्वलंत सार्थक चिन्तन-मनन के लिए, समझे दोस्त!" -रचनाकार ने संक्षेप में समझाने की कोशिश की।

"क्या मतलब?" - दूसरा साथी बोला।

"मतलब यह कि लघुकथा एक ऐसी पंचपंक्ति से संदेश छोड़ती है, जो पाठकों के सोच-विचार के लिए अक्षदण्ड का काम करती है, तत्काल या तत्काल से दीर्घकाल तक, कभी-कभी तो कालजयी कृति बना देती है रचना को!" नवांकुर रचनाकार ने अपना अब तक का ज्ञान बांटते हुए कहा- "पढ़ कर तो देखो कुछ दिग्गजों की लिखी लघुकथायें!"

"तू ही पढ़ ले, और भिड़ा रह इन्टरनेट पर!" मिले-जुले स्वर में साथियों ने व्यंग्य किया।

"व्यंग्य मत करो यार, इन्टरनेट भी हम नये रचनाकारों के लिए अक्षदण्ड ही है, वरना आज के व्यस्ततम जीवन में नये लिखने वालों को घर बैठे दोस्त माफ़िक गुरूजन कहाँ नसीब!" रचनाकार ने अपने सीने पर हाथ रखकर कहा।

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 18, 2016 at 3:58pm
रचना पटल पर उपस्थित हो कर अपनी राय से अवगत कराने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी साहब, आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी, आदरणीय विनय कुमार सिंह जी, आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्र जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by Rahila on August 12, 2016 at 10:00pm
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय उस्मानी जी।बहुत बधाई ।सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2016 at 5:36pm

आदरणीय उस्मानी जी ..इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by विनय कुमार on August 11, 2016 at 8:24pm

ये तो हम पर निर्भर है कि फायदा उठायें या नहीं, ज्ञान तो हर जगह मौजूद है| बढ़िया रचना, बधाई 

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 8:06pm
जी सही कहा.
हम जैसे नये रचनाकारों को आप का साथ इंटरनेट ने ही दिया है.

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2016 at 12:18pm

आदरणीय शहज़ाद भाई , ऐसा लगा जैसे सब हुछ ओ बे ओ के लिये कहा हो पात्र ने ! सार्थक लघुकथा के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 10, 2016 at 11:53pm
"सृजन के मेरूदण्ड"- बहुत ख़ूब। उक्त रचना के भाव और अधिक व बेहतर स्पष्ट करते हुए रचना का अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by Sushil Sarna on August 10, 2016 at 4:03pm

वाह आदरणीय उस्मानी साहिब बहुत ही सुंदर विषय को आपने चुना है। हर नज़र का अपना अपना नज़रिया है कोई इन्टरनेट को समय बर्बाद करने का साधन समझता है तो कोई अपने सृजन का नया आधार समझता है। ये वो राह है जहां हर शख़्स में ढूंढने वाले को गुरु तत्व जरूर मिलेगा जो उसके सृजन का मेरुदंड बनता है । इस सार्थक लघुकथा की प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई। 

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