For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये दौलत आदमी को आदमी रहने कहाँ देती --आशुतोष

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

ये दौलत आदमी को आदमी रहने कहाँ देती

ये बारिश बँध के इन नदियों को भी बहने कहाँ देती

गजब का तैश अहदे नौ के इस आदम में देखा है

ये ऐठन आदमी को आज कुछ सहने कहाँ देती

हुए आजाद आजादी मिली कहने को बस हमको

मगर दहशत दिलों की कुछ हमें कहने कहाँ देती

ये बहशीपन ये गुंडागर्दी ये आतंक का साया

शराफत मेरी दुनिया में मुझे रहने कहाँ देती

महाजन का ही कर्जा माँ ने अब तक न चुकाया है

ससुरजी सोचिये मुफलिस वो माँ गहने कहाँ देती

खुदा का ध्यान रख माथा नवाया माँ के चरणों में

कृपा माँ की कोई दीवार है ढहने कहाँ देते  

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:09am

जयनित जी ..आपका परामर्श मेरे लिए बहुमूल्य हैं ...इस रचना पर फिर समय दूंगा ..प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:07am

लक्ष्मण भाई जी ..आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा उत्साह मिला / हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:05am

आदरणीया कांता जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:05am

आदरणीय समर कबीर जी ..रचना पर आपका मार्गदर्षन हमेशा मिलता है ..इससे नई ऊर्जा मिलती है ...आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे इस कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:03am

आदरणीय पंकज जी ..आपका सुझाव मेरे लिए अमूल्य है ..मैं आपकी बात से सहमत हूँ ..मतले के शेर क  दुसरे मिसरे पर आपके परामर्श का इंतज़ार रहेगा ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 23, 2016 at 10:11pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने। हार्दिक बधाई आपको।

ग़ज़ल को थोड़ा वक़्त और देंगे तो ये रचना निखर जाएगी।

सादर!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:42am

आ0 आशुतोष कुमार जी, सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई l

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 10:08am
बहुत ही खूबसूरत गजल बनी है यह आपकी आदरणीय आशुतोष कुमार जी । बहुत बहुत बधाई आपको ।
Comment by Samar kabeer on February 22, 2016 at 3:40pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी आदाब,,अच्छी ग़ज़ल कही आपने मुबारकबाद क़ुबूल करें !
जनाब पंकज जी के सुझाव पर ध्यान ज़रूर दें !
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 22, 2016 at 2:26pm
मत्ले के दूसरे मिसरे में "बन्ध" के कारण मात्रा दोष आ रहा है।

महाजन का ही कर्जा आज तक भी माँ के सर पर है।(सुझाव)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
26 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
55 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
57 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया। अच्छा मतला हुआ। ‘सुनते…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service