For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुखौटे (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

 ‘बेशक हमारे भाई साहिब को देश छोड़े एक अर्सा हो गया यू.एस.ए. में उन्होनें अपना बिजनेस एम्पायर खड़ा कर लिया है पर उन्हें अपने देश और अपनी संस्कृति से अब भी बहुत प्यार है। इसलिए वो अपने बेटे के लिए मेम नहीं बल्कि एक सुसंस्कृत भारतीय बहू चाहते है।’ शहर के नामचीन बिल्डर अपनी डाॅक्टर पत्नी सहित मेयर साहिब के घर उनकी इकलौती बेटी के लिए अपने भतीजे के रिश्ते के सिलसिले के लिए बतिया रहे थे।

‘यह तो बहुत अच्छी बात है। मेरी बहन व बहनोई भी यू.एस.ए. सिटीज़न हैं । वो आपके भाई साहिब को बहुत अच्छी तरह से जानते है। जब उन्हे आपके भाई साहिब की इच्छा के बारे में पता चला तो उन्होनें मेरी बिटिया के बारे में उनसे बात की।’

‘जेठ जी ने यह जिम्मेवारी हमारे उपर डाल दी है । रात उनका फोन आया और उन्होनें आपके परिवार और लड़की के बारे में पूछा तो मैनें तो उसी वक्त उन्हें कह दिया था कि वहां तो आंखे मूंद कर रिश्ता किया जा सकता है और लड़की भी एकदम खरा सोना है।’

‘ये तो आप लोगों की ज़र्रानवाज़ी है, जिसके लिए मैं सदैव कृतज्ञ रहूंगा। बेटी अच्छे घर में चजी जाए तो इसकी माँ की आत्मा को भी शांति मिल जाएगी । अच्छा भाई साहिब अगले महीने जो माॅल बन रहा है उसके लिए आपने टेंडर भरा कि नहीं?’

‘नहीं अभी तो नहीं भरा। कुछ अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि दूसरे लोग क्या रेट ‘कोट’ करेंगे।’

‘आप फिक्र न करें, परसों शाम को आ जाइए, डिनर भी हो जाएगा और आपको दूसरे लोगों के टेंडर भी दिखा दूंगा, उस हिसाब से आप अपना टेंडर तैयार कर लीजिएगा।’

‘भाई साहिब ! मेरे क्लीनिक की उपरी मंजिल के निर्माण लिए आपके दफतर से ‘क्लीयरेंस’ सर्टीफिकेट चाहिए था, आप जरा उसे भी देख लेते...।’ डाॅक्टर साहिबा भला कैसे पीछे रहती

‘बहन जी ! आप जब परसों डिनर के लिए आएंगी तो आपका ‘क्लीयरेंस’ सर्टीफिकेट भी आपके हाथ में होगा, आप बेफ्रिक रहिए। ’

‘अच्छा मेयर साहिब ! अब इजाज़त दीजिए। परसों शाम को मिलते हैं।’

‘बहन जी ! आपके सभी काम हो जाएंगे पर यू.एस.ए. तक ये खबर न पहुंचे कि आप मेरी बेटी का अबाॅर्शन भी कर चुकी हैं...।’ दरवाज़े तक छोड़ते हुए मेयर साहिब धीरे से डाॅक्टर साहिबा के कान में फुसफुसाए

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 626

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:46pm

हाई प्रोफाइल लोगों की असलियत | बहुत ही बढ़िया कथा हुई है आदरणीय | हार्दिक बधाई |

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 11:36am

 नकाबों को अच्छा बेनकाब किया है आपने आदरणीय , हार्दिक बधाई आपको इस शानदार रचना पर आदरणीय रवि जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2015 at 10:37pm

ग़ज़ब का वार्तालाप ! तो ये हैं तथाकथित उच्च (लोगों के) संस्कार ! बातचीत के ताने-बाने से ढोंग को बढिया उजागर किया गया है. 

हार्दिक बधाई, अनुज रवि जी. शुभकामनाएँ 

Comment by Nita Kasar on December 20, 2015 at 9:05pm
अपनी कमज़ोरियाँ छुपाने के लिये कितने मुखौटे लगा लेते है लोग ये ऊँचे लोगों ने विवाह को फ़ायदे का सौदा बनाकर रख दिया ।बड़े लोगों के असली चेहरे एेसे भी बधाई आपको आद०रवि प्रभाकर जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 20, 2015 at 9:11am
हृदयतल से बधाई आपको आदरणीय सर जी
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 20, 2015 at 6:43am
बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना।हाई प्रोफाइल लोगों की वास्तविकता व्यवहार को उजागर करती हुई।हार्दिक आभार आदरणीय रवि सर।
Comment by Janki wahie on December 20, 2015 at 6:38am
सामाजिक ताने बाने के खोखलेपन को उजागार करती बेहतरीन लघुकथा।हार्दिक बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 19, 2015 at 3:41pm
व्यावहारिकता, व्यावसायिकता व स्वार्थपरकता से रंगे मुखौटों का सुंदर सार्थक सटीक चित्रण। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय रवि प्रभाकर जी ।
Comment by kanta roy on December 19, 2015 at 3:37pm

 पढते ही मन वितृष्णा से भर उठा । आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य , जहाँ नैतिक मुल्यों का ह्वास हो रहा है । अब हमारे घरों में और रिश्तों पर भी भ्रष्टाचार नये मुखौटे में पदार्पण कर चुकी है ।
दहेज का सामाजिक विरोध सफल हो रहा है काफी हद तक लेकिन दुसरी तरफ वह रूप बदल कर अब , शादियाँ बिजनेस एग्रीमेंट के रूप में व अन्य विविध शक्लों को अख्तियार कर रही है ।
समाज की कुत्सित मनःस्थिति पर तंज कसती हुई एक शानदार लघुकथा आपकी । 
पढकर मन आनंद - आनंद हो उठा । 
बधाई ? ना ,ना , शत - शत अभिनंदन आपको आदरणीय रवि जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"सादर अभिवादन स्वीकार करें आदरणीय Raktale जी। आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ।"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय दयाराम मेठानी साहब सादर, उत्तम सीख देते तीनों ही मुक्तक सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी सादर, सुन्दर अभिव्यक्ति. निर्धन पिता के लिए बेटी का ब्याह किसी…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, अच्छा प्रयास है आपका दोहों पर. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. भाई दिनेश…"
4 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"आदरणीय नमस्कार । दोहे छंद हेतु बधाई किंतु कई स्थान पर देवी को देवि लिखा गया है व कहीं कहीं पँचकल…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"तीन मुक्तक(1) थके मांदे परिन्दों को शाखों से उड़ाया मत कीजिये, अपने वरिष्ठ जन भी है थके मांदे सताया…"
12 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"नारी बेटी का ब्याहगरीब पिता के लिएहोता है जीवन भर का स्वप्न देखा कई बार इसके लिएखेत बिकतेखलिहान…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"शुभ प्रभात, आदरणीय! नवरात्रः दोहे मातृ-शक्ति ही पूज्य है, शारदीय नवरात्र । नौ स्वरूप हैं देवि के,…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167
"स्वागतम"
yesterday
Mamta gupta joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
yesterday
DINESH KUMAR VISHWAKARMA updated their profile
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service