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संत्रास (लघुकथा) : रवि प्रभाकर

ढलती शाम के वक्त खचाखच भरी बस में सेंट की खूशबू में लबालब जैसे ही वह दो लड़कियां चढ़ी तो सभी का ध्यान उनके जिस्म उघाड़ू तंग कपड़ों की ओर स्वत ही खिंचता चला गया । बस की धक्कमपेल का नाजायज़ फायदा उठाते हुए कुछ छिछोरे किस्म के लड़के रह रह कर उन्हे स्पर्श करते हुए बीच बीच में कुछ असभ्य कमेंट भी कर रहे थे परन्तु वो दोनों लड़कियां इन सबसे बेपरवाह आपस में हँस-हँस कर बातें करने में व्यस्त थीं।
‘इधर बैठ जाओ बेटी !’ सीट पर बैठा हुआ एक बुर्जुग बच्चे को सीट से अपनी गोद में बिठा कर थोड़ा एक तरफ सरकता हुआ लड़की से बोला
‘अरे बैठा रह ताऊ ! लगता है बासी कढ़ी में उबाल आ रहा है’ लड़की उपहास करते हुए थोड़ी तेजी से बोली तो बस में सवार सभी यात्री भी उस बुर्जुग पर हंसने लगे और वो बुर्जुग झेंपकर सिर झुकाकर बैठ गया।
अगले स्टाॅप पर दोनों लड़कियां उतर गईं।
‘तूने तो अंकल के साथ बहुत ‘रूड बिहेव’ किया, उसने तो बैठने को सीट ही आॅफर की थी और तुझे ‘बेटी’ भी तो कहा ।’
‘मुझे चिढ़ है ‘बेटी' शब्द से... जिसने मुझे इस धंधे में ढकेला वो भी मुझे ‘बेटी’ ही कहता था। आंखों से अंगारे बरसाती हुयी वो बोली

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:50pm

धोका खाये हुए इंसान कितना कडवा बोल देता है | बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय सर इस लाजवाब कथा के लिए |

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:37pm

रचना पर आपके हस्‍ताक्षर पा रचना कार्य सफल हुआ आदरणीय डॉ. प्राची सिंह जी । सादर आभार

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:36pm

रचना पर पधारने व अपने अनमोल विचार देने हेतु आदरणीय महर्षि त्रिपाठी, आदरणीय जवाहर सिंह व आदरणीय सीमा सिंह जी आपको ह्दय तल से आभार ।

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:34pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी रचना के मर्म को समझने व समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:33pm

आदरणीय कांता रॉय जी कथा को अपना बहुमूल्‍य समय देने व इसकी इतनी बारीकबानी से समीक्षा देने हेतु आपका सादर आभार ।

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:32pm

आदरणीय कांता रॉय जी कथा को अपना बहुमूल्‍य समय देने व इसकी इतनी बारीकबानी से समीक्षा देने हेतु आपका सादर आभार ।

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:30pm

आदरणीय वीर मेहता जी व आदरणीय शशि बांसल जी आप तुल्‍य प्रतिभाशाली कथाकारों की साकारात्‍मक प्रतिक्रिया रूपी आशीर्वाद सदैव उर्जावान करता है। सादर आभार

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:28pm

रचना पर आपकी उपस्‍थिती सदैव गौरवांन्‍ित करती है आदरणीय सौरभ पांडे भाई जी । आपकी प्रेरणा ने सदैव अच्‍छा लिखना को प्रेरित किया है भाई जी । आपके स्‍नेह व ओबीओ के मंच का सदैव ऋणी रहूंगा । सादर

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:25pm

रचना को अपना कीमती समय देने हेतु आदरणीय विनय कुमार सिंह जी, आदरणीय ओमप्रगास क्षत्रिय जी व आदरणीय तेजवीर सिंह जी का हार्दिक आभार ।

Comment by Ravi Prabhakar on July 25, 2015 at 2:23pm

लघुकथा पर आपकी उपस्‍िथती व साकारात्‍मक टिप्‍पणी के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब ।

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