For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिसकियां (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

‘चल अब छोड़, जाने भी दे! इसमें इतना रोने की क्या बात है, यह कोई नयी बात थोड़े ही है। हम जैसे लोगों के साथ तो ये हमेशा से ही होता आया है। तू इतने टेसुए क्यों बहा रही हो ? वैसे गल्ती भी तेरी ही है, अगर तुझे प्यास लगी थी तो अपने पीने का पानी बाहर ही तो रखा होता है फिर तू रसोईघर में क्यों गई ?’ सिसक रही अपनी पत्नी को वो दिलासा दे रहा था।

‘मैं तो यही सोच कर इनके यहां काम करने को लगी थी कि चलो पढ़-लिख कर अफसर बन गए है तो क्या हुआ, हैं तो ये हम लोगों में से ही ना। पर ये लोग... कोई और हमारे साथ कैसे भी बर्ताव करें कोई फर्क नहीं पड़ता पर ये अपने होते हुए भी....।’ उसकी सिसकियां और गहराने लगीं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:41pm

अपने ही तो घाव देते है | बहुत सुंदर कथा हुई है आदरणीय रवि सर | हार्दिक बधाई |

Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:28pm

हाँ , ये सच है की दुःख तो अपने लोगों के ही व्यवहार से होता है। हमेशा की तरह बेहद सधे  हुए ,  बहुत ही गहरे प्रभाव के साथ ,  तंज कायम किया  है यहां आपने  आदरणीय रवि जी । बधाई प्रेषित है।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 7:35pm

आदरणीय रवि भाई , अशारों मे आपने बहुत गँभीर और कड़वा सच कह दिया ! लघुकथा के लिये आपको हार्दिक बधाई । 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 21, 2016 at 6:05pm
वाआह्ह्ह्ह्ह्!बेहतरीन सन्देश का सम्प्रेषण हुआ है आदरणीय सर जी।एक नवीन कुप्रथा जो प्राचीन कुप्रथा से प्रेरित है।सादर हार्दिक बधाई इस अद्भुत रचना के लिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:58pm

आदरणीय रवि जी, गहन और प्रभावोत्पादक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 12:19pm

 कम शब्दों में बहुत गूढ़ अर्थ संप्रेषित करती इस लघु कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय रवि प्रभाकर जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 19, 2016 at 12:52pm

हार्दिक बधाई अदरणीय रवि प्रभाकर जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2016 at 10:50am
वाााह.....
// ... कोई और हमारे साथ कैसे भी बर्ताव करें कोई फर्क नहीं पड़ता पर ये अपने होते हुए भी....।//...बेहतरीन पंचपंक्ति के साथ बेहतरीन संदेश वाहक अनुपम कृति के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय श्री रवि प्रभाकर जी। मूल समस्या हल होने के बजाए अपने नये तुच्छ रूप लेती जा रही है। अपने ही अपनों के साथ ऊंच-नीच/छुआछूत का बर्ताव करने से नहीं चूकते!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
33 seconds ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"कैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास ।  .. क्या-क्यों-कैसे सोच कर, यदि हो…"
4 minutes ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"  आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंद की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर "
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, वाह ! उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सभी दोहे सुन्दर रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
8 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service