For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत कविता : संवेदना (गणेश जी बागी)

गर्मी में भीग जाते हैं

पसीने से  

ठंढ में खड़े हो जाते हैं

रोयें...

हमारी त्वचा

तुरंत परख लेती है

मौसम परिवर्तन को

 

धूल-कण आने से पहले

बंद हो जाती हैं पलके

उन्हें पता चल जाता है

है कोई खतरा

 

सुगंध और दुर्गन्ध में

अंतर करना जानती हैं

ये नासिका

खट्टा, मीठा, तीखा सब

तुरंत भाप लेती है

हमारी जिह्वा

 

हल्की सी आहट को

पहचान लेते हैं

हमारे कान

अर्थात

सभी अंग संवेदनशील हैं

हृदय के सिवाय

 

कर्तव्य पथ में  

कभी आड़े नहीं आती

हृदय की संवेदनशीलता

चाहे कोई जले या मरे

हम हैं.....

संवेदनशील अंगों वाले

असंवेदनशील लोग

भाषण चालू है....

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : विरोध

Views: 1210

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2015 at 10:05am

समसामयिक विषया पर तीक्ष्ण  प्रहार. तहेदिल से बधाई..  मेरा मानना है कि  बुद्धि अति ध्रुष्ट होती है.....ह्रुदय  चाहकर  भी  कुछ नहीं कर पाता है.  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:24am

ज्वलंत मुद्दे पर आपने एक बेहद संवेदनशील रचना रची है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 24, 2015 at 3:26pm

आदरणीय गणेश भाईजी 

हृदयहीन  हैं इसीलिए हम, राजनीति में आये हैं।

जब सैकड़ों झूठे वादे किए, तब मंत्री पद पाये हैं ॥

जो जग से जाना चाहे , कौन रोक उसे  पाएगा ? 

भाषण बाजी चलती रहे, टीआरपी बढ़ जाएगा॥

किस्मत वाला किसान था, हर चैनल्स पर छाया है।

आत्महत्या से चमक गया, “ आप” को भी चमकाया है॥

घर परिवार समाज और भारत के बड़े विद्यालयों से जैसी शिक्षा और संस्कार आज बच्चे पा रहे हैं उसमें करुणा सेवा संवेदना आदि भावों के लिए कोई स्थान नहीं है। टीवी अखबार  और आज के गुरू सिखाते हैं ... “ ज़िद करो दुनिया बदलो ” । अब तो ऐसी घटनायें होती ही रहेंगी।

सोचने पर मज़बूर करती इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 24, 2015 at 1:19pm

आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी सार्थक रचना के लिये बधाई .....अपने दुःख सुख तो नज़र आते हैं मगर जब बात दूसरों तक पहुंचे तो दिल की मर्जी ...सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on April 24, 2015 at 10:33am

इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Neeraj Neer on April 24, 2015 at 9:05am

बहुत ही बढ़िया ... बहुत सामयिक एवं सलीके से कही गयी बात ..... ऐसे लोग इंसानियत के नाम पर कलंक हैं। वक्त साबित करेगा कि ये लोग नीरो को भी पीछे छोड़ देंगे ... 

Comment by Tanuja Upreti on April 24, 2015 at 8:00am
हृदय स्पर्शी रचना के लिए बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 11:01pm
क्या खूब लिखा है, आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी , तत्क्षण संवेदन शील अंगों के समूह में संवेदन हीन ह्रदय ( भाव शून्य ह्रदय ) , कितना कठोर ह्रदय , पाषाण तुल्य ह्रदय , क्या कहें , विवश ह्रदय या ह्रदय हीन ह्रदय। आश्चर्य भी होता है , कैसे जीता है स्वयं ह्रदय।
बहुत ही सारगर्भित , सुविचारित , भावपूर्ण प्रस्तुति, बधाई, बहुत बहुत बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2015 at 10:58pm

जिस शरीर के सभी अंग भगवान्  ने  इतने संवेदन  शील  बनाए हैं वही  इंसा हृदय से इतना असंवेदन कैसे हो गया की कोई सामने मरता रहे और वो दूर खड़ा तमाशा देखता रहे धिक्कार है ऐसे मानव जीवन पर ....बहुत कुछ कहती आपकी ये रचना दिल में गहरे तक पैठ गई 

बहुत बहुत बधाई इस रचना पर आ० गणेश जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2015 at 10:18pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी, आपकी सराहना युक्त टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
1 hour ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service