For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - खबर बन गयी

२१२ २१२ २१२ २१२

ज़िंदगी किस कदर इक सफ़र बन गयी

अनलिखी ये कहानी खबर बन गयी

 

बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी

बात खींची गयी फिर रबर बन गयी

 

राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ

सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी

 

बेवफाई मिली आग दिल में जली

बेअदब आज मेरी नज़र बन गयी

 

चाह हमने रखी रोशनी की अगर

आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी

 

ईश्क की इक नज़र कैद में जो मिली

हथकड़ी टूटकर इक तबर बन गयी

निधि 

 (मौलिक और अप्रकाशित) 

तबर : कुल्हाड़ी के ऊपर का हिस्सा जो चीजों को काटता है 

Views: 641

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:22am

आदरणीया निधि जी , बहुत बढ़िया, सुन्दर रचना पर बधाई आपको ! सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 25, 2015 at 10:43pm

आदरणीया निधि जी , ग़ज़ल बहुत खूब सूरत कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥ आदरणीया राजेश जी की सलाह क़ाबिले गौर है , खयाल कीजियेगा ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2015 at 4:01pm

आदरणीया ..इस सुंदर ग़ज़ल के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 8:18am

बहुत खूब. आ. राजेश कुमारी जी की इस्लाह मूल्यवान है 
सादर 

Comment by Nidhi Agrawal on March 24, 2015 at 10:18pm

सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार ..आपकी उपस्थिति के लिए, प्रेरणा और हौसला आफजाई के लिए 

आदरणीय समर साहब, जानती हूँ की सही शब्द कब्र है ..अभी तो बहर में लिखने की कोशिश कर रही हूँ और ऐसे में सब कुछ सही रखने में अपने आप को असमर्थ पाती हूँ  लेकिन फिर भी कोशिस करती हूँ सुधारने की 

लेकिन जहर तो ऐसे ही लिखा जाता है और बोला जाता है .. कभी जह्र नहीं सुना न पढ़ा .. फिर जैसे गुनिजन कहेंगे मान लुंगी 

आदरणीया दीदी .. रदीफैन दोष पर नज़र नहीं गयी थी .. बहुत बहुत धन्यवाद्.. कोशिश करती हूँ शब्दों को फेर कर लिखने की 

Comment by vijay nikore on March 24, 2015 at 10:50am

बहुत खूबसूरत खयाल । बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on March 24, 2015 at 10:00am
उम्दा गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद ....
Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 10:47pm
मोहतरमा निधि साहिबा,आदाब,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने,बधाई स्वीकार करें, लेकिन इन अशआर में क़ाफ़िये का इस्तेमाल ग़ज़ल के क़ायदे के मुताबिक़ नहीं है:-

(1)"राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ
सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी"

(2)"चाह हमने रखी रोशनी की अगर
आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी"

सही शब्द है "ज़ह्र"
इसी तरह सही शब्द है "क़ब्र"

इस क़ायदे के लिहाज़ से यह अशआर बह्र से ख़ारिज माने जाऐंगे,ग़ज़ल में आपकी उत्सुकता देखकर ही यह जानकारी दे रहा हूँ,कृपया अन्यथा न लें |
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:56pm
सुन्दर प्रस्तुति, बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 9:40pm

प्रिय निधि जी ,बहुत प्यारी ग़ज़ल लिखी है सभी शेर सुन्दर बने हैं ,मतला तो बहुत ही ज्यादा पसंद आया. 

बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी

बात खींची गयी फिर रबर बन गयी--वाह्ह्ह्ह

आपकी ग़ज़ल का काफिया अर है तो जहर शब्द का मुझे भी संशय है

एक बात और आपको बताना चाहूंगी निधि जी ,आपके दूसरे ,चौथे  और छटे शेर में जुज्ब-ए- रदीफैन  दोष आ रहा है जिसको आप थोड़े से शब्दों के हेर फेर से दुरस्त कर लेंगी मुझे विश्वास है.फिलहाल  दिल से दाद कबूलें  

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service