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1212 1122 1212 112/22

दबी हर आह तेरा इश्क़ भी दबा ही सही
जुदा है तेरा ये अंदाज़ तो जुदा ही सही

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही

खयाल तेरी तमन्ना का है मेरे दिल में
सो रहनुमाई को अब तेरा मशविरा ही सही

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 7, 2015 at 6:35pm

सर्वप्रथम विलम्ब हेतु मैं आप सबसे हाथ जोड़कर क्षमा माँगता हूँ कि कुछ व्यस्तता कुछ नेट की समस्या के चलते मैं समय पर आ नहीं पाया। मेरी रचना को जो सम्मान आपने दिया वो मुझे भावविभोर कर गया आप सुधिजनों के स्नेह से लगातार अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है। मैं आप सभी का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ और अनुरोध करता हूँ इस खाकसार पर आप सब की नज़रे इनायत रहे, ऐसा ही स्नेह मिलता रहे।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 4:50pm

बहुत ही खूबसूरत गजल आदरणीय शिज्जू सर जी. कमाल के अशआर कहें है आपने

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं
महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही........यह शेर दिल को छो गया, तहे दिल से बधाई लीजियेगा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2015 at 1:04pm

बड़े ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं शिज्जू जी, ख़ासकर ये

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ढेर सारी दाद कुबूल कीजिए 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:00pm

आदरणीय शिज्जु साहब इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आपको , सादर !

हर एक शय में मुहब्बत के किस्से बिखरे हैं

महल नहीं न सही एक मक़बरा ही सही........वाह 

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है

कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही.....बहुत सुन्दर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 2, 2015 at 11:47am

आदरणीय शिज्जु भाई , एक से बढ़ के एक शे र हुये हैं , क्या बात है ! हर एक शे र के लिये मुबारकबादें कुबूल करें ।

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

मेरा खयाले मसर्रत में दिन ग़ुज़रता है   ........ (  मिरा तो ख़्वाबे मसर्रत में दिन गुज़रता है  -- सोच के देखियेगा )
कुछ और देर यूँ ख्वाबों का सिलसिला ही सही   ---  लाजवाब !!  हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 9:30am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी,
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी,
निवेदन है कि प्रायः ऐसी त्रुटि होती नहीं , पर हुयी ,जिसका खेद है, क्षमा चाहूंगा। आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी ने जिस प्रेम और आदर भाव से इसे लिया और ध्यान आकर्षित किया वह सराहनीय है, और याद भी रहेगा। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 9:22am
मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही ॥
बहुत ही सुन्दर आदरणीय शिज्जु शकूर जी, बधाई , बधाई, बधाई, सादर।
Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 8:57am

आदरणीय विजयशंकर सर ..मेरी ग़ज़ल में उतर आती .....शेर  काश मेरी ग़ज़ल से निकालता ,,कोई बात नहीं बड़े भाई की बधाई यह अनुज स्वीकार कर ही सकता है ...शिज्जु भाईसाहब की तरफ स आपका हार्दिक आभार |(ज़रूरी नहीं कि हर अच्छा शेर नाचीज़ का हो .....हा..हा.. हा..सादर )


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Comment by अरुण कुमार निगम on March 2, 2015 at 8:53am

आदरणीय शिज्जू जी ,

शानदार गज़ल कही. हर अश'आर उम्दा ...

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही.....................वाह !!!!!!! खास दाद कबूल करें.............

Comment by khursheed khairadi on March 2, 2015 at 8:52am

मेरी ग़ज़ल में उतर आती है वो आहिस्ता
मेरा हयात से बस इतना वास्ता ही सही

ग़ज़ल में डूब के खुद को भुला दिया हमने
चलो कुछ और नहीं तो यही नशा ही सही

आदरणीय शिज्जु सर ,बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है |शेर दर शेर ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

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