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ग़ज़ल -- सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू

सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू

इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू

मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू

दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश' ये दौलत की होड़ तू

-- दिनेश कुमार ०१/०३/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 7:28pm

वाह! कमाल के अशआर लिखे आदरणीय दिनेश जी.

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू.......सच! बहुत सही कहा

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू.......अक्सर आस में ही प्यासा रह जाता है इंसान. तहे दिल से बधाई स्वीकारें

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2015 at 1:09pm

अच्छे अश’आर हुए हैं दिनेश जी। दाद कुबूल कीजिए

"दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू" ये वाला मिसरा तो मेरे लिए ही है क्योंकि यहाँ हम लोग सतलज की धार को दो बार मोड़ चुके हैं। :)


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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2015 at 11:25pm

//मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू// 

वाह वाह आदरणीय दिनेश जी, बहुत ही खुबसूरत शेर, सभी अशआर खुबसूरत और भाव प्रधान हुए हैं, मकता के लिए अलग से बधाई देता हूँ, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:08pm
आदरणीय दिनेशजी आपकी गज़लें हमेशा ही दिल को छूने वाली होती हैं मौजूदा ग़ज़ल ने तो सरापा रोमांच से भर दिया। हर शेर के लिये दाद हाज़िर है
Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:43pm

इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू

आदरणीय दिनेश जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशआर बहुत पसंद आये हैं |आशा की जोत जलती हुई ग़ज़ल है |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on March 1, 2015 at 8:08pm

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू

बहुत सुंदर बात कही दिनेश भाई |

Comment by umesh katara on March 1, 2015 at 8:00pm

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू
........वाह दिनेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 7:08pm

आदरणीय दिनेश भाई बहुत आहंगखेज ग़ज़ल है ...ग़ज़ल कई बार गुनगुनाई पढ़कर आनंद आ गया कमेन्ट नहीं किया क्योकि बह्र नहीं थी तो कमेन्ट अधूरा रहता. 

सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू................... बेहतरीन मतला 

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू.............. सुन्दर शेर 

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू.......... गहराई है भाई जी शेर में  ... सीधा साधा सच्चा शेर ...अच्छा शेर 

दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश' ये दौलत की होड़ तू.......... वाह वाह दिनेश भाई उम्दा  मतला 

Comment by maharshi tripathi on March 1, 2015 at 6:59pm

दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश' ये दौलत की होड़ तू...........बहुत सुन्दर अंतिम पंक्ति तो लाजवाब है ,,,आपको बधाई प्रेषित है आ.दिनेश कुमार जी |

Comment by दिनेश कुमार on March 1, 2015 at 6:33pm
221-2121-1221-212... Likhna bhool Gaya tha भाई मिथिलेश जी।

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