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तरही ग़ज़ल : तू रात की रानी है (गणेश जी बागी)

          221-1222-221-1222

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो 
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.

 
तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : प्रीत

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 28, 2015 at 6:34pm

बहुत खूब बागी जी, सुबीर जी के तरही मिसरे पर क्या खूब ग़ज़ल हुई है। दादमदाद कुबूल कीजिए।


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Comment by गिरिराज भंडारी on February 28, 2015 at 3:49pm

आदरणीय बागी भाई जी , बौत दिनो बाद आपकी गज़ल पढ्ने मिली , और क्या खूब मिली । होली की हुलास और भाङ मिली बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , आपके ।

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो  -- लाजवाब ! आदरणीय दिली बधाइयाँ स्वीअकार करें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 28, 2015 at 12:56pm

आ0 बागी जी

आपकी गजल आ० सौरभ जी की गजल  'होली है हुलासों की' की तर्ज पर है i गुनीजन इस पर काफी कुछ कह चुके हैं  i आपकी इस गजल का अंदाज बिलकुल अलग है  और हर अशआर अपने रंग में है जैसे-

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना 
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.----------------- बहुत सुन्दर

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.-------------- रातो को जगाना अद्भुत कल्पना है

 
तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?------------ कनेर और रात  की रानी का मिलन  और वह समां ---- वाह -- आदरणीय


Comment by Nirmal Nadeem on February 28, 2015 at 11:53am

Bahut khooob janab behtareen ghazal hai waaah waaaah

Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 9:37am

आदरणीय इं. गणेश जी “बागी” सर खूबसूरती से संजो कर कितना हसीं ख्वाब सा बुन दिया है आपने !

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.
क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.......वाह , हार्दिक बधाई !

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 28, 2015 at 8:59am

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो. ..क्या कहने!आदरणीय..बधाई

Comment by maharshi tripathi on February 28, 2015 at 1:01am

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ 
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?,,,,,,,,,,वैसे तो हर पंक्ति अपने आप में बहुत खूबसूरत है ,,,,पर ये कुछ जयादा ही खूबसूरत लगी ,,,,आपको हार्दिक बधाई आ.बागी जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 27, 2015 at 11:50pm
तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?
बहुत खूब , आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी , बहुत बहुत बधाई । सादर।

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