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कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,

अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |

हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें

बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे

कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं 

बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |

(2)

सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात | 
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते 
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी 

रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |

(मौलिक व प्रकाशित)

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 20, 2015 at 3:30pm

कुंडलियों के रूप में सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी, बधाई प्रेषित करता हूँ सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 12:26pm

लड़ी वाला जी

यह  कच्ची /पक्की में तुक कहाँ है मित्र i सुधार कर लें ,  भाव अच्छे है i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 11:00pm
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज सर सुन्दर कुण्डलिया हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 9:57pm

यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी 

रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |......बहुत सुन्दर आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी, हार्दिक बधाई !

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