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ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,

खलिहानों से आ रही, पीली  पीली  गंध |

 

जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,

मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |

 

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |

 

कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,

अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |

 

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ सी, वसुधा ने ली ओढ़

नयें वस्त्र में डालियाँ, दिख जाती हर मोड़ |

 

गुनगुन करते गा रहे,भँवरों का अब दाँव,

पीत रंग में सज रहे,  साजन से हर गाँव |

 

कलियों की मुस्कान से, खिला प्यार का रंग,

मन मयूर अब नाचता, भर कर खूब उमंग |

 

काम काज सब छोड़कर, लौटा उलटे पाँव

बासंती मौसम हुआ,  देख हमारे गाँव |

 

गोद भराई हो रही, कर न सके सब चूक,

महक उठें उपवन सभी, कुहू कुहू की कूक |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 7, 2015 at 9:57am

बसंत ऋतू पर रचित दोहों का अवलोकन कर उत्साहवर्धन  करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 11:05am

दोहे पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक  आभार श्री हरी प्रकाश दुबे जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:43am

सुप्रभात | बसंत के मौसम पर रचे दोहों पर सुंदर टिपण्णी कर प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार भाई श्री खुर्शीद खैराडी जी | 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:41am

दोहे सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री अजय शर्मा जी और श्री लक्ष्मण धामी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:38am

दोहें सराहने के लिए आपका अतिशय आभार श्री मिथिलेश वामनकर जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 6, 2015 at 10:36am

दोहे अच्छे बन पड़े यह जानकर संतोष हुआ  आपका हार्दिक आभार श्री विजय शंकर जी और श्री समर कबीर जी | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2015 at 8:26pm

वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार  

माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |--अतिसुन्दर 

हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 5, 2015 at 3:01pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ,बहुत सुन्दर रचना...

गोद भराई हो रही, कर न सके सब चूक,

महक उठें उपवन सभी, कुहू कुहू की कूक |...क्या बात है ! बधाई ,सादर !

Comment by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:13pm

आदरणीय ,लडीवाला जी ,बहुत सुन्दर दोहावली है |

फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान

मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |

 

पुष्प जड़ी चुनरियाँ सी, वसुधा ने ली ओढ़

नयें वस्त्र में डालियाँ, दिख जाती हर मोड़ |

 आपने मौसम के मज़े को दुगुना कर दिया |सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2015 at 12:52pm

आ0  भाई  लडीवाला जी, सभी दोहे बहुत अच्छे हैं , बधाई ।

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