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लघुकथा : न्यू ट्रेंड (गणेश जी बागी)

“वर्मा साहब, एक बात समझ में नहीं आयी, आपने फ़िल्म प्रोडक्शन पर अधिक और फ़िल्म प्रमोशन एवं मिडिया मैनेजमेंट पर मामूली बजट का प्रावधान किया है, जबकि आजकल तो प्रमोशन पर प्रोडक्शन से कहीं अधिक बजट खर्च किये जा रहे हैं.”
“डोंट वरी दादा ! कम प्रमोशनल बजट में भी फ़िल्म हिट करवाई जा सकती है.”
“अच्छा अच्छा, मतलब आप फ़िल्म में आइटम डांस वगैरह डालने वाले है.”
“नो नो, इटिज वेरी ओल्ड ट्रेंड”
“तो अवश्य कोई किसिंग या बोल्ड बेड सीन दिखाने को सोच रहे हैं.”
“अरे नहीं दादा इसमें नया क्या है ये सब तो अब टीवी सिरिअल वाले भी दिखा रहे हैं”
“फिर क्या सोचा है आपने ?”
“अरे कुछ नहीं, धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले कुछ सीन घुसेड देंगे, धर्मगुरु और मिडिया वाले स्वतः फ़िल्म प्रमोट कर देंगे और वो भी मुफ्त में.”
“और सेंसर बोर्ड ?”
“दादा वो सब आप मुझपर छोडिये, फ़िल्म इंडस्ट्री में मैं कोई नया हूँ क्या ? सब मैनेज हो जाता है.”

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => हास्य घनाक्षरी : ईलाज 

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 3:47pm

आदरणीय गणेश भाईजी,

किसी चीज को विवादास्पद बना दो फिर तो लोग टूट  पड़ेंगे देखने सुनने के लिए।

अफसोस इस बात का है कि अन्य धर्मों का मज़ाक उड़ानेवाले तो देश बदर हो जाते हैं परंतु हिंदू धर्म का मज़ाक उड़ानेवाले भारत में ही ऐश करते हैं क्योंकि मीडिया और उच्च हिंदू वर्ग जो स्वयं को धर्म से ऊपर मानते हैं ,अनावश्यक तर्क देकर इन्हीं का साथ देते हैं। इसलिए हिन्दुओं का  कोई आंदोलन अंजाम तक नहीं पहुंच पाता।

सुंदर कटाक्ष युक्त लघु कथा की बधाई  
 

Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 30, 2014 at 6:24pm

पि. के . फिल्म पर करारा   व्यंग।  साधुवाद।  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2014 at 12:52pm

सामयिक समाचारों को लेकर गहरा  कटाक्ष करती सुंदर लघु कथा | आजकल सेंसर बोर्ड की किसे प्रवाह है | यथार्थ कथ्य 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 30, 2014 at 8:42am

आदरणीय गणेश जी, सुन्दर सामयिक कटाक्ष . यही नया ट्रेंड है.............

Comment by Dayaram Methani on December 29, 2014 at 11:12pm

अच्छा सामियक कटाक्ष है। जैसा कि फिल्म पीके के साथ हो रहा है। जैसे जैस उसका विरोध्ा बढ़ रहा है फिल्म की कमाई बढ़ रही है। इस रचना के लिये बधाई।

Comment by seemahari sharma on December 29, 2014 at 10:53pm
सही है बहुत सी फ़िल्में इस क्रम में रखी जा सकती हैं आज की चर्चित फिल्म तो सभी जानते हैं येन केन प्रकारेण फिल्म चलना चाहिए भावनाएं आहत हों,भले होती रहें
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 7:02pm

आ० बागी जी

आपने सच कहा i  धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने वाली फिल्म ही नहीं साहित्य भी बहुत सफल है  i  वरना  तसलीमा नसरीन को कौन जानता ? सैटेनिक वर्सेज को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिलती  i आज तो रिलीज  होने से पहले ही फिल्म बैन  हो जाती है और फिर जुगाड के  बाद सब उसे देखते भी हैं  i बहुत सत्य और सुन्दर लघु कथा i सादर i


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2014 at 5:30pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना जी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2014 at 5:19pm

ट्रेंड को समझने और लघुकथा सराहने हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय सोमेश जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2014 at 5:16pm

आभार आदरणीय राहुल दांगी जी.

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