For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२१२२/११२२/22 (११२)
.
यूँ वफ़ाओं का सिला मिलता रहा,
ज़ख्म हर बार नया मिलता रहा.
.

एक छोटी सी मुहब्बत का गुनाह,
और इल्ज़ाम बड़ा मिलता रहा.
.

मै तुझे दोस्त मेरा कैसे कहूँ,
तू भी तो बन के ख़ुदा मिलता रहा..
.

कोई मंज़िल न मिली मंज़िल पर,
सिर्फ मंज़िल का पता मिलता रहा.
.

एक दिन मैंने मनाया जो उसे,
फिर वो बेबात ख़फ़ा मिलता रहा.
.

मेरी तहज़ीब, मिलूँ मै झुककर,
शख्स हर एक बड़ा मिलता रहा.   
.
निलेश "नूर" 
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 827

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2014 at 10:49am

आदरणीय नीलेश भाई , तरमीम के बाद सच में और भी अच्छी हो गयी है ग़ज़ल , बहोत खूब , आदरणीय बधाइयाँ स्वीकार करें |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 5, 2014 at 9:31am

नूर तू  है तो गजल बानूर है

तु नही तो तो जहाँ  बेनूर है

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2014 at 11:23pm
" यूँ वफ़ाओं का सिला मिलता रहा,
ज़ख्म हर बार नया मिलता रहा ॥ "
बहुत खूब , यही नहीं , सभी छे बहुत अच्छे हैं।
आदरणीय नीलेश शेवगांवकर नूर जी , बधाई
Comment by भुवन निस्तेज on September 4, 2014 at 10:58pm

वाह नूर साहब क्यानूर पाया है आपने, तहे दिल से दाद कबूल करें....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 4, 2014 at 5:41pm

एक और बदलाव 
.

मेरी तहज़ीब, मिला मै झुककर,
हर कोई मुझसे बड़ा मिलता रहा.     ..यूँ पढ़िए और बताइये कि कौनसा बेहतर है :)

 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 4, 2014 at 5:21pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब ..एक छोटी से तरमीम के साथ पढ़िए 
.
एक दिन मैंने मनाया था उसे, को 
एक दिन मैंने मनाया जो  उसे .... कर दिया है 
सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 4, 2014 at 5:18pm

एक छोटी सी मुहब्बत का गुनाह,
और इल्ज़ाम बड़ा मिलता रहा.,,,,,lलाजबाब 

कोई मंज़िल न मिली मंज़िल पर,
सिर्फ़ मंज़िल का पता मिलता रहा...अनंत की यात्रा पर पथिक 

एक दिन मैंने मनाया था उसे,
फिर वो बेबात ख़फ़ा मिलता रहा....ऐसा कई बार मैंने महसूस किया था 

आदरणीय नूर जी इस शानदार ग़ज़ल पहर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service