जब भी आऊंगा खाकर तुमसे गाली मैं
इस धरती के नाम लिखूंगा हरियाली मैं
छोटे-छोटे बच्चों की उंगली थामूंगा
आसमान तक दौड़ लगाऊंगा खाली मैं
हरेक महल के हर पत्थर से बात करूंगा
मज़दूरों के लिए बजाऊंगा ताली मैं
जिस दिन तेरे बच्चे भी पढ़ने जाएंगे
उस दिन तुझे कहूँगा 'हैप्पी दीवाली' मैं
खेतों में सपने फिर से उगने लगते हैं
जब भी करता हूँ बातें फसलों वाली मैं
इक दिन तेरे लिए दमाऊं-ढोल बजेगा
उस दिन झूम के गाऊंगा फिर क़व्वाली मैं
"मौलिक व अप्रकाशित"
डॉ. राकेश जोशी
Comment
आदरणीय गिरिराज जी,
मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
आदरणीय राकेश जोशी भाई , ग़ज़ल की बातों के लिहाज़ से आपने सुन्दर बातें कहीं हैं , बस मिसरे एक ही बहर में नहीं लग रहे हैं ,गज़ल के गंभीर प्रयास के लिए आपको बधाइयाँ |
आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी,
आपको मेरी ग़ज़ल पसंद आई. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
धन्यवाद, आदरणीय डॉ. भट्ट जी.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
अच्छे भाव है ....मतला समझ नहीं आया ..कि गाली का हरियाली से क्या सम्बन्ध है ...
ग़ज़ल में रदीफ़ काफ़िये के निर्वहन के साथ बह्र का पालन भी जरूरी है ...इस विषय पर बहुत सी सामग्री ग़ज़ल की कक्षा में उपलब्ध है ..आशा है आप लाभ उठाएंगे ..
अच्छे प्रयास हेतु बधाई
बहुत सुंदर रचना। अलग तरह की। सुंदर संयोजन। बधाई।
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