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दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

दो ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

1
सब मिला है पर यहाँ सदभाव की बातें नहीं
गाँव का मौसम है लेकिन गाँव की बातें नहीं

आ, यहाँ पर बैठकर सुस्ता लें थोड़ी देर हम
धूप की बातें करेंगे, छाँव की बातें नहीं

इससे ज़्यादा क्या लिखें, इस दौर की नाकामियां
इस अँधेरे युग में भी बदलाव की बातें नहीं

दूर से ही ठीक था फैला समुंदर देखना
अब लहर के पास आकर नाव की बातें नहीं

बाद बरसों के मिले तो दोस्त बनकर हम मिलें
दर्द की बातें तो हों, पर घाव की बातें नहीं

आदमी की बात कर लें आदमी से आज हम
प्यार की बातें करें, बिख़राव की बातें नहीं

ये सफ़र अब ख़त्म होने को है, मेरे हमसफ़र
अब मिलन की बात हो, अलगाव की बातें नहीं

2
बंद सारी खिड़कियाँ हैं, सो रही हैं
नींद में गुम बत्तियाँ हैं, सो रही हैं

तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं

किसने पतझड़ को बुलाया है इधर
पेड़ पर कुछ पत्तियाँ हैं, सो रही हैं

इक सितारा घिर गया तूफ़ान में
और जितनी कश्तियाँ हैं, सो रही हैं

याद तुमको कर रहा हूँ इस समय
क्योंकि जो मजबूरियाँ हैं, सो रही हैं

पास मेरे चंद ख़त हैं, साथ ही
ढेर सारी तितलियाँ हैं, सो रही हैं

मैं तुम्हारे ख़्वाब में गुम हो गया
बीच में जो दूरियाँ हैं, सो रही हैं

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 630

Comment

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Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 19, 2014 at 6:05pm
आदरणीय खुर्शीद जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
Comment by khursheed khairadi on October 13, 2014 at 10:26pm

तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं

आदरणीय राकेश जोशी जी अच्छे अशहार हुये हैं ,दिलीदाद कबूल फरमाएं |सादर 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 13, 2014 at 4:52pm

आदरणीय संदेश नायक जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 9:11am

माननीय जोशी जी,

बहुत गहरी अभिव्यक्ति, गहन चिंतन दृष्टिगोचर होता है आपकी रचना में । 

बधाइयाँ एवं अभिनन्दन ।  

Comment by Dr. Rakesh Joshi on October 13, 2014 at 8:24am

आदरणीय डॉo विजय शंकर जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by somesh kumar on October 13, 2014 at 7:09am

बेहद सुंदर प्रस्तुति 

बधाई स्वीकार करें आदर्णीय

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2014 at 8:05pm

इससे ज़्यादा क्या लिखें, इस दौर की नाकामियां
इस अँधेरे युग में भी बदलाव की बातें नहीं।।
बहुत सुन्दर। दोनों ही गज़लें बहुत सुन्दर हैं , आदरणीय डॉo राकेश जोशी जी।

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"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
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