Added by Dr. Rakesh Joshi on January 5, 2016 at 9:26pm — 12 Comments
आपकी तालीम का हर अर्थ कुछ दोहरा तो है
आकाश पर बादल नहीं पर हर तरफ कोहरा तो है
बादशाहों की हमेशा ज़िन्दगी महफूज़ है
लड़ने-मरने के लिए शतरंज में मोहरा तो है
इस महल में अब खज़ाना तो नहीं बाकी रहा
द्वार पर दरबान है, संगीन का पहरा तो है
शोर करना हर नदी की चाहे हो आदत सही
ये समंदर हर नदी से आज भी गहरा तो है
तुम क़सीदे खूब पढ़ लो पर यहाँ हर आदमी
हो न गूंगा आज लेकिन, आज भी बहरा तो…
ContinueAdded by Dr. Rakesh Joshi on January 4, 2016 at 10:30pm — 15 Comments
मैं गीतों को भी अब ग़ज़ल लिख रहा हूँ
हरेक फूल को मैं कँवल लिख रहा हूँ
कभी आज पर ही यकीं था मुझे भी
मगर आज को अब मैं कल लिख रहा हूँ
बहुत कीमती हैं ये आँसू तुम्हारे
तभी आँसुओं को मैं जल लिख रहा हूँ
लिखा है बहुत ही कठिन ज़िंदगी ने
तभी आजकल मैं सरल लिख रहा हूँ
समय चल रहा है मैं तन्हा खड़ा हूँ
सदियाँ गँवाकर मैं पल लिख रहा हूँ
मैं बदला हूँ इतना कि अब हर जगह पर
तू भी तो थोड़ा बदल लिख रहा हूँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 19, 2014 at 5:30pm — 6 Comments
Added by Dr. Rakesh Joshi on October 12, 2014 at 5:27pm — 7 Comments
जब भी आऊंगा खाकर तुमसे गाली मैं
इस धरती के नाम लिखूंगा हरियाली मैं
छोटे-छोटे बच्चों की उंगली थामूंगा
आसमान तक दौड़ लगाऊंगा खाली मैं
हरेक महल के हर पत्थर से बात करूंगा
मज़दूरों के लिए बजाऊंगा ताली मैं
जिस दिन तेरे बच्चे भी पढ़ने जाएंगे
उस दिन तुझे कहूँगा 'हैप्पी दीवाली' मैं
खेतों में सपने फिर से उगने लगते हैं
जब भी करता हूँ बातें फसलों वाली…
Added by Dr. Rakesh Joshi on August 26, 2014 at 9:46pm — 7 Comments
(चार ग़ज़लें)
1
रास्तों को देखिए कुछ हो गया है आजकल
इस शहर में आदमी फिर खो गया है आजकल
काँपते मौसम को किसने छू लिया है प्यार से
इस हवा का मन समंदर हो गया है आजकल
अजनबी-सी आहटें सुनने लगे हैं लोग सब
मन में सपने आके कोई बो गया है आजकल
मुद्दतों तक आईने के सामने था जो खड़ा
वो आदमी अब ढूँढने खुद को गया है आजकल
आदमी जो था धड़कता पर्वतों के दिल में अब
झील के मन में सिमटकर सो…
ContinueAdded by Dr. Rakesh Joshi on August 16, 2014 at 6:00pm — 37 Comments
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