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काम से थककर चूर पत्नी ने कमर पीड़ा से कराहते हुए दर्द भरे स्वर में कहा - ‘हाय रा s sम !’

बिस्तर पर लेटे –लेटे पति ने पत्नी की व्यथा सुनी, बुरा सा मुंह बनाया और जोर से आह भरी – ‘हाय सी s sता !'

 

 

[अप्रकाशित व् मौलिक]

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2014 at 11:02am

आदरणीय नीरजजी

आपका आभार i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2014 at 10:25am

हालांकि  प्रथम द्रष्टि में ये चुटकुला सा लगता है किन्तु इसके मर्म में एक बहुत बड़ा संगीन मुद्दा छुपा हुआ है ----स्त्री के दर्द को हँसी में उड़ा देना उसका  मजाक बना  देना  एक पुरुष प्रधान समाज की छोटी मानसिकता ही तो है और क्या .....लघु कथा अपना सन्देश देने में कामयाब है| बहुत- बहुत बधाई आ० डॉ गोपाल नारायण जी| 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2014 at 9:47am

बहुत बढ़िया लघुकथा, बधाई आदरणीय डा.गोपाल जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 30, 2014 at 9:23pm

पुरूष प्रधान समाज का एक सच आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर सादर बधाई आपको इस रचना के लिये।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 30, 2014 at 9:00pm

माफ़ी चाहूँगा, किन्तु यह चुटकुला से अधिक नहीं है । 

Comment by बृजेश नीरज on June 30, 2014 at 8:15pm
:) सुन्दर कथा। बहुत बधाई आपको।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 30, 2014 at 6:41pm
वाह ! दर्द है , सहानुभूति है , सब से बड़ी बात है , जबरदस्त एहसास है। दो शब्दों में क्या कुछ कह गए आप। आदरणीय गोपाल नरायन जी सादर बधाई .

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