For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अश्क का दरिया भी रुख पे आ गया

अब्रे गम जब दिल पे मेरे छा गया

अश्क का दरिया भी रुख पे आ गया

आइना देखा है जब भी दोस्तों

सामने मेरे मेरा सच  आ गया

यूं तो गुल लाखों थे बगिया में मगर

दिल को लेकिन कोई कांटा  भा गया

वो हसीं गुल आने वाला है इधर

चूम झोंका खुशबू का बतला गया

हाल उनसे कहते दिल का जब तलक

यार नजरों से ही सब जतला गया

जिसने भर दी खार से ये जिन्दगी

फूल नकली दे के फिर बहला गया

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 10:02pm

हाल उनसे कहते दिल का जब तलक

यार नजरों से ही सब जतला गया.... वाह बेहद उम्दा .. बहुत -२ बधाई आपको  सादर ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 3:11pm

वाह वाह आदरणीय आशुतोष सर बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है अंतिम शेर हेतु विशेष दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2013 at 11:54am

आशुतोष जी

इस अर्थपूर्ण ग़ज़ल के लिए आपको बधाई हो i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2013 at 6:45am

जिसने भर दी खार से ये जिन्दगी
फूल नकली दे के फिर बहला गया
वाह क्या कहने, आदरणीय भाई आशुतोष जी बधाई .

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:26pm

हाल उनसे कहते दिल का जब तलक

यार नजरों से ही सब जतला गया..........बहुत खूब.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 24, 2013 at 7:49pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी हौसला अफजाई के लिए तहे दिल शुक्रिया ..आदरणीय बागी जी के मार्गदर्शन के अनुरूप परिवर्तन कर लिया है .जिससे शेर पहले से बढ़िया हो गया है . आप सभी का स्नेह यूं ही सतत मिलता रहे ..सादर 

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 6:16pm

आ0 आशुतोष जी सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । आ0 बागी जी के द्वारा बताए गए संशोधनों को करके देखिये गजल और अधिक खूबसूरत हो सकती है । सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 24, 2013 at 5:48pm

आदरणीय श्याम जी .हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया .बस यूं ही स्नेह बनाएं रखें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 24, 2013 at 5:47pm

आदरणीय बागी सर ..आपका सतत प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मुझे मिलता रहा है ..आपके सुझाव मुझे बेहद पसंद आये थोड़े से परिवर्तन से ही शेर खुद मुझे अब बेहतर लग रहा है ,,आपके मार्गदर्शन के अनुरूप परिवर्तित करूंगा ..तहे दिल धन्यवाद और भविष्य में भी आपका स्नेह यथावत मिलता रहे ऐसी कामना के साथ ,,सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 24, 2013 at 5:42pm

आदरणीय अभिनव जी ..आपके द्वारा उत्साह वर्धन से मुझे सतत ही हौसला मिलता रहा है ..एक बार पुनः हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service