ला ला ल ला ल ला ला ल ला ला ला ला ल ला
महफ़िल तू आज फिर से सजाने की बात कर
हसरत जवा है पीने पिलाने की बात कर
चिलमन कहाँ से आया तेरे मेरे बीच में
चिलमन हटा ये नजरें मिलाने की बात कर
चिलमन हटा तो मुखड़े को घूंघट में यूं छुपा
गुल की कली न ऐसे जलाने की बात कर
जलवे जो तेरे पहली दफा देखे थे कभी
इक बार फिर वो जलवे दिखाने की बात कर
हाथों में हाथ तेरे हों बस इतनी आरजू
जन्मों की प्यास मेरी बुझाने की बात कर
दीवानगी में हो ही गयी गर कोई खता
मलिका ए हुस्न यूं ना सताने की बात कर
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय आशुतोष जी
बढिया . बढिया.. वाह !
सुन्दर रुमानी गज़ल कही है डॉ आशुतोष मिश्रा जी, बधाई स्वीकारें।
आदरणीय ब्रिजेश जी ..हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया ..सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीया अनुपमा जी ..आप सबके मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से ही संभव होता है ..बस यूं ही मार्गदर्शन करती रहे ..सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय निकोर सर ..सादर प्रणाम ..बस आपका आशीर्वाद मिलता रहे यही कामना है ..सादर
आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..बस यूं ही प्रोत्साहित करते रहे और गलतियों पर मार्गदर्शन करते रहे ..सादर
आदरणीय बैद्नाथ जी ..मेरी रचना आपको पसंद आयी शुक्रगुजार हूँ आपका ..सादर
आदरणीय शिज्जू जी ..आपके उत्साह वर्धक शब्द ही मेरी रचना धर्मिता की निरंतरता है बस यूं ही स्नेह बनाए रखें .सादर
आदरणीय आमोद जी ..आपके उत्साह वर्धक शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
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