For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये

१२२२   १२२२   १२२२    १२२२

छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये

बना दो रिंद दुनिया को सुहानी शाम हो जाये

 

जुदा मजहब के लोगों को मिला दे आज ऐ साकी

तरीका कोई भी हो आज दिलकश काम हो जाये

 

हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं

करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये

 

हजारों फूल गुलशन में जुदा हैं रूप रंगत भी

मगर खुशबू जुदा मिलकर हसीं पैगाम हो जाये

 

न जाने किसकी साजिश है बहाते हम लहू अपना

करो मिलकर दुआ साजिश सभी नाकाम हो जाये

 

हमारे बंधू बांधव ही बने हिन्दू बने मुस्लिम

मुखौटों में तो कोई भी यूं ही गुमनाम हो जाये

 

वो आयें शौक से मंदिर करें मस्जिद में हम सजदा

हो काशी उनका औ काबा हमारा धाम हो जाये

 

मिलो बकरीद में सबसे मनाओ साथ दीवाली

मिलो ऐसे की घर अहबाब के कुहराम हो जाये

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 908

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 6:04pm

//अति उत्साही होने पर आपकी कबीराना फटकार मुझे मिलती रहे .//

सादर आदरणीय.. :-))))

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2013 at 4:43pm

आदरणीय सौरभ सर ..आपके शब्द कभी मुझे उर्जा से लवरेज कर देते हैं..कभी चिंतन के लिए प्रेरित करते हैं ..आपका मार्गदर्शन मेरे लिए हमेशा अमूल्य रहा है ..भविष्य में भी आपका स्नेह और अति उत्साही होने पर आपकी कबीराना फटकार मुझे मिलती रहे ..बस इसी ख्वाइश के साथ ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 8:50pm

वाह .. गंग-जमुनी संस्कार को शब्द देने के लिए हार्दिक बधाई और ढेरों दाद !
शुभेच्छाएँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 12:19pm

वाह वाह आदरणीय आशुतोष जी बेहतरीन ग़ज़ल शानदार अशआर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 21, 2013 at 7:08pm

बहुत बहुत खूबसूरत गजल। बधाई माननीय। सादर नमन।

Comment by shashi purwar on December 21, 2013 at 6:38pm

waah bahut khoob

हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं

करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये.. sundar gajal hai mananiye badhai aapko

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:27am
आदरणीया कल्पना जी, आदरणीय केतन जी , आदरणीय लक्ष्मणजी , आदरणीया वंदना जी, आदरणीय निलेश जी, आदरणीय गिरिराज भाईसाब , आदरणीया राजेश जी ....आप सभी का सतत प्रोत्साहन मुझे कुछ न कुछ नूतन लिखने की प्रेरणा देता है ..आप सभी का स्नेह यूं ही मिलता रहे इसी अभिलाषा के साथ ..सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:23am
आदरणीया मीना जी,आदरणीय केवल जी मेरी रचना आपको पसंद आयी इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 21, 2013 at 11:22am
आदरणीय शिज्जू जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 21, 2013 at 9:06am

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय आशुतोष जी बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
3 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
17 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
17 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service