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मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
प्रेमी जोड़ों का सुकूँ चैन चुरा जाता है
दिल की धड़कन को बढ़ा सीने में तूफ़ान छुपा
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता है
सर्द हो रात हो बरसात का मादक मंजर
मौसम-ए-इश्क सदा सब को जला जाता है
दर्द ऐसा भी है, अहसास सुखद है जिसका
मौसम-ए-इश्क वो अहसास करा जाता है
देख आँखों मे चमक गुल की यूँ हैराँ मत हो
मौसम-ए-इश्क हसी नूर खिला जाता है
गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू जी ..आपकी राय पर अमल करने की कोशिस कर रहा हूँ ..मुझसे कोई भी गलती हो तो मुझे हमेशा की तरह आपके स्नेहिल मार्गदर्शन की अभिलाषा है ..आपके परामर्श के अनुरूप ग़ज़ल की बातें में आदरणीय वीनस जी द्वारा दी गयी जानकारी का भी अध्यन कर रहा हूँ ..बस यूं ही स्नेह बनाये रखें सादर धन्यवाद के साथ
सुंदर ग़ज़ल ... एक साँस पे पढ़ी जाने वाली लय ..और उत्तम भाव....
इस सम्प्पर्ण पॅकेज के लिए बधाई
आदरणीय आशुतोष जी वाह बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल मौसम-ए-इश्क का बहुत ही सुन्दर वर्णन क्या कहने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपको ढेरों बधाई !!!!
गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है --- सत्य वचन भाई जी , बहुत खूब , बधाई !!!!!
मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
हुस्न वालों का भी ईमान हिला जाता है.............वाह! बेईमान जाता है, ईमानदार मतला हुआ
गैर अपनों से लगें अपने लगें गैरों से
मौसम-ए-इश्क तमाशा यूँ दिखा जाता है...........वाह! तमाशा दिखाता हुआ मिसरा
कमाल की लाजवाब गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय डा. आशुतोष जी
मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
हुस्न वालों का भी ईमान हिला जाता है
धड़कने दिल की बढ़ा सीने मे तूफॉ रखकर
मौसम-ए-इश्क दबे पाँब चला जाता है
आदरणीय आशुतोष जी खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई ........
आदरणीय आशुतोष जी
मौसमे इश्क दबे पांव चला जाता है i
पुरानी कहावत है - आग लगाके जमालो दूर खडी i
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने i मुबारक हो i
क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल कही है मौसमे इश्क पे
इस ग़ज़ल के लिए दिली दाद हाजिर है
जय हो
मौसम-ए-इश्क हसीं प्यास जगा जाता है
हुस्न वालों का भी ईमान हिला जाता है वाह क्या बात है बेहतरीन मतला हुआ है
आदरणीय डॉ आशुतोष जी
अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें
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