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01.ख्वाहिश

साधारण लोग
सहज स्वभाव

छोटी-छोटी बातें
दुःखी कर देती हैं
छोटी-छोटी बातों से
खुश हो जाते हैं

हम तो ख्वाब भी देखते हैं
तो छोटे-छोटे
टुकड़ों में....


नही है ख्वाहिश
आसमान छूने की
इतना चाहते हैं
बस जमीन न छूटे
और न छूटे
अपनों का साथ ।।

02.सनक

कई दिनों से
वह देख रहा था
बर्फ की चादर ओढ़े
सुंदर शहर को..

शाम हुआ
खुद को कर लिया
कमरे में बंद
रात भर लिखते रहा
सुंदर-सुंदर प्रेम की कविताएँ
और बाहर
दो सनकी
खेल रहे थे
धमाकों का खेल...

सुबह बाहर निकला
सुंदर शहर वीरान हो गया था
चारों तरफ बर्बादी-ही-बर्बादी
पागलों-सा
इधर-उधर भटकने लगा
फिर
किसी कोने में दिखा
एक आदमी,
कराहता

बदहवास-सा वह
उसके पास गया
और पढ़ने लगा
रात में अपनी लिखी हुई
सुंदर-सुंदर कविताएँ
फिर पूछा,
कैसी लगीं?

आदमी ने धीरे-से कहा
प्प.. प्प पानी ...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 4, 2022 at 10:09pm

आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 3, 2022 at 12:50pm

आदरणीय गणेशजी बाग़ी साहिब आदाब, पहली क्षणिका सुंदर और भावपूर्ण रचना हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें,

दूसरी क्षणिका का पूर्वार्द्ध भी वर्तमान युद्ध के परिप्रेक्ष्य में श्लाघनीय हुआ है मगर उत्तरार्द्ध में रचना के शीर्षक (सनक) के संदर्भ में रचना एक दोराहे पर भटक गयी लगती है... सादर।

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