१२२/१२२/१२२/१२२
चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
अँधेरों से डर कर चढ़ा रौशनी पर।१।
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किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
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बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
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खड़े देवता हैं सभी कठघरे में
करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
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सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
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अजब देवता जो डरे आदमी से
हुआ द्वंद भारी यहाँ आरती पर।६।
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दगाबाज फितरत सभी की है यारो
भरोसा करे कोई कैसे किसी पर।७।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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Comment
//बेहतर करने के लिए आप भी सुझाव दें//
उचित लगे तो यूँ कह सकते हैं:-
'अँधेरे का ग़ुस्सा किया रौशनी पर
हँसी आ रही है तेरी बेबसी पर'
'वही बह्स करता रहा ताजगी पर'
ये अब ठीक है ।
//मतले पर आप ही कुछ मार्गदर्शन करें तो बेहतर होगा।//
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, आपके कथन की तामील में एक कोशिश है (पता नहीं आपके भाव के अनुसार है या नहीं) देखियेेगा :
'टली मौत जैसे हँसा ज़िन्दगी पर
अँधेरों से डर कर रुका चाँदनी पर' सादर।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, सराहना व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले के इंगित मिसरे में कहने का तात्पर्य यह है कि अँधरे से डर कर अँधेरे के बजाय उजाले पर गुस्सा किया जा रहा है। यदि यह बात स्पष्ट नहीं हो पायी हो तो बदलने का प्रयास करूँगा। बेहतर करने के लिए आप भी सुझाव दें।
दूसरे शेर के मिसरे को यूँ किया है देखिऐगा-
वही बह्स करता रहा ताजगी पर
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद। मतले पर आप ही कुछ मार्गदर्शन करें तो बेहतर होगा।
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले के इंगित मिसरे में कहने का तात्पर्य यह है कि अँधरे से डर कर उजाले पर गुस्सा किया जा रहा है। इस नजरिए से एक बार देखिएगा सादर...
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
मतले पर गुणीजनों से सहमत हूँ ।
'बहस कर रहा है वही ताजगी पर'
आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि सहीह शब्द "बह्स" 21 है ।
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले का शिल्प थोड़ी और तवज्जो चाहता है। सादर।
आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह धामी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है! पहली बार लगा प्रतीकों के माध्यम से आप अच्छी ग़ज़ल कह सकते है ं! बधाई स्वीकार करें! लेकिन भाई, मतला रब्तहीन है! " डर कर " रोशनी तक नहीं पहुँचा जा सकता ! 'लड़ कर' न्यायोचित है! सादर
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