पर्व गुरुओं का मनाते आज हम
और मन के पास आते आज हम।१।
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पुष्प भावों के चढ़ाते आज हम
शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
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है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
मान उनको दे जताते आज हम।३।
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सीख उनकी आचरण में ढालकर
कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
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आब भर कर है सितारों सा किया
हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
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ज्ञान दाता बढ़ बिधाता से हैं तो
यश उन्हीं का गा सुनाते आज हम।६।
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दीप सा जलना जो सीखा उनसे है
तब कहीं तम यूँ मिटाते आज हम।७।
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भेद का हर भाव मेटा मन से तब
धर्म मानव का निभाते आज हम।८।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्ध न के लिए धन्यवाद।
आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर, अच्छी ग़ज़ल हुई है ! गुरुवर मात्र समर्पण के आकांक्षी होते हैं, शेष तो बस कृपा बरसती है । ग़ज़ल हेतु आप
भाई के पात्र हैं ।
उत्तम ग़ज़ल कही आदरणीय धामी जी...
आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
शिक्षक दिवस पर अच्छी गजल हुई है।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार ।
आ. भाई मनोज कुमार जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपका सुझाव अच्छा है इससे बात अधिक स्पष्ट हो गयी है । सादर..
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, शिक्षक दिवस पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
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