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पेट की जुगाड़ (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (47)

चौंक गयी थी कुन्ती पहली बार इतनी बड़ी मशीनों को देखकर। तो अम्मा और कम्मो इसी लिए बुरी तरह थक जाती थीं । वह चीख कर कम्मो को रोकना चाह रही थी कि कारखाने के श्रमिक उसके पिता ने अपनी कठोर हथेलियां उसके मुँह पर रख दीं। फ़िर धीरे से उसके कान में उसने कहा - " पगली यहाँ पीछे से चिल्लायेगी , तो उसका हाथ मशीन में फंस न जायेगा !"

"बापू तुम इतनी कम उमर में कम्मो दीदी से ये काम करवाते हो !"

"पेट की जुगाड़ के लिए अगले बरस से तुझे भी आना पड़ेगा, तेरी अम्मा से अब नहीं होता । साहब कह रहे थे कि उसे घर पर बिठा, अब हमारे किसी काम की नहीं रही ! "

"हम नहीं आयेंगे बापू यहाँ, हम तो स्कूल जायेंगे और अब कम्मो को भी नहीं आने देंगे । अम्मा को भी कोई दूसरा काम दिला दो न !"

इसके आगे वह कुछ बोलती, उसके पहले ही वह उसे घसीट कर बाहर ले गया और बोला - "टी.वी. पे सरकारी दीदियों की बातें सुन सुन के बिगड़ रही है ! "

" और तुम कम्मो दीदी को बिगाड़ रहे हो !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 6:38am
रचना पटल पर उपस्थित हो कर हौसला अफ़ज़ाई हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 29, 2015 at 8:36pm

जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब , वाक़ई पेट इंसान से कुछ भी करवा सकता है। ...... बेहतर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2015 at 12:32pm

आ० उस्माने जी --------बहुत करीने सीप्नी बात राखी आपने , बधाई हो जनाब. 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 28, 2015 at 10:17pm
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 28, 2015 at 10:15pm
अपना अमूल्य समय देकर रचना पर प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी। अपने टिप्पणी में 'कहानी' शब्द लिखा , क्या यह लघु-कथा नहीं हो पाई है ?
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 28, 2015 at 10:12pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर रचना की सराहना करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 28, 2015 at 7:36pm

आदरणीय उस्मानी जी ..वाकई पेट की भूख को शांत करने के लिए क्यां क्या नहीं करना पड़ता है ..मजबूरी क्या होती है इसका अच्छा चित्रण किया है आपने ..इस रचना पर हार्दिक बधाई सादर 


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Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 7:20pm

अच्छी कहानी एक अलग ही विषय पर. पेट की आग क्या नहीं करवाती |बहुत बहुत बधाई आ० शेख़ उस्मानी जी .

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 12:53pm
लाचारी एक विडम्बना है।शिक्षा पर भी धन हावी है।सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी।

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